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________________ [ ३८ ] हेमचन्द्राचार्य ने अपने योगशास्त्र मे इस प्रकार बताया है : "सर्वज्ञो जितरागादिदोषत्रैलोक्यपूजितः । यथास्थितार्थवादी च देवोऽहन् परमेश्वरः ॥" अर्थात्-सर्वज्ञ, रागद्वेषादि दोषों को जीतने वाला, त्रैलोक्य पूजित और यथास्थित-सत्य कहने वाला ही देव, अर्हन् अथवा परमेश्वर है। इसी प्रकार हरिभद्रसूरि ने महादेव अष्टक में कहा है कि :"यस्यसंक्लेशजननो रागो नास्त्येव सर्वथा । न च द्वेषोऽपि सत्त्वेषु शमेन्घनदवानलः ॥ न च मोहोऽपि सज्ज्ञानच्छादनोऽशुद्धवृत्तकृत् । त्रिलोकख्यातमहिमा महादेवः स उच्यते ॥ यो वतिरागः सर्वज्ञो यः शाश्वतसुखेश्वरः । क्लिष्टकर्मकलातीतः सर्वथा निष्कलस्तथा ॥ यः पूज्यः सर्वदेवानां यो ध्येयः सर्व देहिनाम् । यः स्रष्टा सर्वनीतीनां महादेवः स उच्यते ॥" उपर्युक्त लक्षणों से स्पष्ट जान पडता है कि जो राग, द्वेष मोह से रहित है, त्रिलोकी में जिसकी महिमा प्रसिद्ध है, जो वीतराग है, सर्वज्ञ है, शाश्वत सुख का स्वामी है, सब प्रकार के कर्मों से रहित है, सर्वथा कला रहित है, सर्व देवों का पूज्य
SR No.010196
Book TitleJagat aur Jain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri, Hiralal Duggad
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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