SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७ ] सम्बन्ध मे कई प्रसंगों का वर्णन तो कर ही रहे हैं, परन्तु इनके सिवाए महाभारत एवं रामायणादि में भी जैनधर्म सम्बन्धी उल्लेख पाये जाते हैं। साराश यह है कि हिन्दुधर्मशास्त्रों और पुराणों मे भी इसके सम्बन्ध में उल्लेख पाये जाते हैं । जैनधर्म के आदि तीर्थंकर श्री ऋषभदेव का वर्णन श्रीमद् भागवत के पाचवे स्कन्ध के तीसरे अध्याय में पाया जाता है । यह ऋषभदेव भरत के पिता थे कि जिन के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पडा था । भागवत के कथानुसार ऋषभदेव साक्षात् विष्णु का अवतार थे । इससे भी आगे बढ़ कर देखें तो वेदों में भी जैन तीर्थंकरों के नाम आते हैं । ये कोई बनावटी नाम नहीं हैं परन्तु जैनों के माने हुए २४ तीर्थंकरों के नामों में से ही हैं जो कि विद्वान इतिहासवेत्ताओं की शोध के परिणाम स्वरूप सिद्ध हो चुके हैं । ऊपर दिये गये प्रमाणों पर से स्पष्ट ज्ञात होता है कि वेदों मे भी तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख पाया जाता है इन तीर्थंकरों को जैन लोग देव मानते हैं। इस लिये यह कहना किंचिन्मात्र भी अतिशयोक्ति न होगा कि वेदरचना के काल से पहिले भी जैनधर्म अवश्य था । 1 Dr Guerinot कहता है There can no longer be any doubt that Parsva was a Historical personage According to the Jain Tradition, he must have lived a hundred ३
SR No.010196
Book TitleJagat aur Jain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri, Hiralal Duggad
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy