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________________ जयशंकर प्रसाद मांग की । रामगुप्त द्वारा ध्र वस्वामिनी खिंगिल की भेंट कर दी गई । अपने कुल की मान-रक्षा के लिए चन्द्रगुप्त, (रामगुप्त का छोटा भाई) ध्र वस्वामिनी के वेश में खिंगिल के शिविर में गया और उसने उसका वध कर दिया । सभी सेनानायकों और सरदारों ने चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाया और रामगुप्त को मार डाला। चन्द्रगुप्त (द्वितीय) को पत्नी ध्रुवस्वामिनो से कुमारगुप्त और गोविन्दगुप्त दो पुत्र हुए। कुमारगुप्त नियमानुसार सम्राट बना । कुमारगुप्तके भी दो पुत्र हुए-एक स्कन्दगुप्त और दूसरा पुरगुप्त । स्कन्दगुप्त नियमानुसार युवराज बनाया गया । ____ 'भ्र वस्वामिनी' और 'स्कन्दगुप्त' में गुप्त-वंश के साम्राज्य-काल का इतिहास है। इन दोनों नाटकों के सभी व्यक्ति इतिहास में प्रसिद्ध है। बंगाल से सौराष्ट्र तक और दक्षिण में मैसोर तक गुप्त साम्राज्य का विस्तार था। ___राज्यश्री' में हर्षवर्धन और राज्यवर्धन के शासन-काल का इतिहास है। इसमें वर्णित भी सभी घटनाएं ऐतिहासिक हैं। हर्ष द्वारा धर्म-सभा की योजना, राज्यवर्धन का गौड़-नरेश नरेन्द्रगुप्त द्वारा वध, हर्ष का पुलकेशिन से युद्ध श्रादि इतिहास की साक्षी हैं। - जहाँ तक हो सका है, प्रसादजी ने घटनात्रों और चरित्रों की नई कल्पना कम ही की है-उनका रूप शुद्ध ऐतिहासिक रखने की चेष्टा की है, फिर भी नाटकों को सफल बनाने और रस-निष्पत्ति के लिए कल्पना से काम अवश्य लिया गया है। __ केवल इतिहास को ज्यों-का-त्यों ही रखकर उन्होंने भ्रमों को सत्य सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं किया। इतिहास और पुरातत्त्व की गम्भीर खोज भी उन्होंने की। अजातशत्र , चन्द्रगुप्त, ध्र व स्वामिनी, स्कन्दगुप्त, राज्यश्री . आदि की भूमिकाए इसकी साक्षी हैं। यूनानी इतिहासों की गल्ती से चन्द्रगुप्त को शुद्र मानने की नासमझी अभी तक की जा रही थी, वह प्रसादजी ने दूर की 'चन्द्रगुप्त' की विशाल भूमिका में चन्द्रगुप्त को सबल प्रमाणों और खोजों द्वारा क्षत्रिय सिद्ध किया और नन्द को शूद्र । राज्यश्री, विशाख, अजातशत्र, जनमेजय का नागयज्ञ, ध्रु वस्वामिनी-सभी का, जो ऐतिहासिक परिचय प्रसाद जी ने दिया है, उससे उनकी गम्भीर इतिहासचेतना का पता चलता है । जातक, पुराण, यूनानी इतिहास, चीनी यात्री सुएनसांग के वर्णन आदि सभी में से उन्होंने अपने प्रमाणों के लिए सामग्री त प्रस्तुकी है । इस प्रकार प्रसाद जी ने दो प्रकार से इतिहास की सेवा की।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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