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________________ हिन्दी के नाटककार ___इस नगरी में सब धान बाईस पमेरी बिकते है। न्याय की प्राशा ही क्या ? जैसा मन आया राजा ने न्याय कर दिया । चाहे गुरुजी के लिए मालपूरा पाये, या चेले के लिए चना-चबेना, सब टके सेर।" । ___ हास्य-व्यंग्य की रचनाओं के अतिरिक्त अन्य नाटकों में भी हास्य का पर्याप्त पुट पाया जाता है। 'नील देवी' यों तो वीर रस प्रधान नाटक है, जहाँ-तहाँ करुणा की झड़ी भी इसमें लगती है, पर हास्य इस नाटक में भी सफल रूप में आया है। 'नील देवी' का चौथा दृश्य एक सराय का है। सराय हास्य के लिए उपयुक्त स्थान है । सराय की मालिक या प्रबंध करने वाली भटियारिन मुसलमानी साहित्य और सभ्यता में मजाक का साधन समझी जाती है, यद्यपि भटियारा-शैली का हास्य शिष्ट नहीं माना जा सकता। भारतीय साहित्य में उसका महत्व नहीं। 'नील देवी' नाटक में मुसलमानी सभ्यता का दिग्दर्शन आवश्यक है। __पीकदानअली, चपरगट्ट और भटियारिन इस दृश्य के पात्र हैं। तीनों ही हास्य के प्रतीक । चपरगट्ट कहता है : "सुना है, वे लोग लड़ने जायंगे। मैने कहा, जान थोड़े ही भारी पड़ी है। यहाँ तो सदा भागतों के प्रागे मारतों के पीछे । जबान की तेग के कहिये तो दस हजार हाथ मारूँ।" ___ कायर और डरपोक सदा से हास्य के आलम्बन रहे हैं। उनकी कायरता और भीरुता सामाजिकों को हंसाती रही है। ये भी दोनों कायर-युद्ध-भीरु हैं। दोनों का गाना भी सुनिये : 'पिकदानो चपरगट्ट है बस नाम हमारा इक मुफ्त का खाना है, सदा काम हमारा। उमरा जो कहें रात तो हम चाँद दिखा दें, रहता है खुशामद से भरा जाम हमारा ।। जर दीन है, कुरान है, ईमाँ है, नबी है, ज़र ही मेरा अल्लाह है, जर राम हमारा।' चरित्रों के अनुरूप यह गाना अवश्य हास्य की उत्पत्ति करेगा। 'नील देवी' में पागल के रूप में बसन्त का अभिनय भी बहुत हास्योत्पादक है । वह बड़बड़ाते हुए मैदान में आता है : "मार मार-मण्ड का बण्ड का सण्ड का खण्ड-धूप-छाँह, चना मोती, अगहन-पूस-माघ, कपड़ा-लत्ता, चमार मार मार--इंट की आँख में हाथी का बान-बन्दर की थैली की कमान ! मार-मार"
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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