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________________ आलोक का इल भी प्रस्तानने का सफल प्रयत्न है । इसमें 'ध्र वस्वामिनी' के अधिकाशमानल जहीन पति सम्राट रामगुप्त को मारकर उसका छोटा भाई चन्द्रगुतीय सम्राट बनता है। ध्र व स्वामिनी देवी धर्मगुरु द्वारा सालासोषित की जाती है। दोनों का विवाह धर्म-सम्मत ठहराया जाता है। स्पष्ट है, यह युग जीवन की समस्याओं के प्रति भी सचेत था। प्रसाद-युग के बाद हिन्दी-नाटकों का नवयुग श्रारम्भ होता है। इसे प्रसादोत्तरकाल कहा जाता है । इस युग मे उन सभी प्रयोगों का विकसित रूप हम देखने हैं, जो 'प्रसाद' ने किये थे। इस युग में उनकी प्रेरणा का प्रभाव भी अनेक नाटककारों पर स्पष्ट है । 'प्रसाद' के प्रभाव से भी इस युग में मुक्ति पाने का स्वस्थ प्रयत्न हुआ। ऐतिहासिक नाटकों की धारा बराबर बहती रही । राष्ट्रीय चेतना इस युग के नाटकों में और भी सबल होकर श्राई । मौर्य-गुप्त-कालीन इतिहास का अवलम्ब त्यागकर राजपूत और मुगलकालीन इतिहास की ओर अधिक ध्यान गया। हिन्दू-मुस्लिम एकता, देश-भक्ति, बलिदान-भावना इस युग के नाटकों में विशेष रूप से देखने को मिलती है। प्रेमी के सभी नाटक राजपूत और मुगलकालीन इतिहास की कथाओं पर लिखे गए। पौराणिक नाटक भी लिखे जाते रहे; पर प्रेमी के 'रक्षा-बन्धन', 'शिवा साधना', 'प्रतिशोध' तथा 'स्वप्न भंग' ने जनता का ध्यान बहुत आकर्षित किया । इस युग में उल्लेखनीय बात यह हुई कि नाटककारों का ध्यान प्राचीन से हटकर वर्तमान पर अधिक गया । वर्तमान जीवन की दैनिक, आर्थिक, सामाजिक समस्याओं को विचार-प्रधान ढंग पर सुलझाने में नाटककार प्रवृत्त हुए । राजा-महाराओं को धता बताकर मजदूर-किसान, क्लर्क, अध्यापक,व्यापारी, सुधारक, नेता, वकील, डॉक्टर आदि को नाटकों में नायक श्रादि का स्थान मिला। इस युगके प्रमुख प्रगतिशील नाटकोपर इब्सन, शा तथा गाल्सवर्दी का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। नाटक काल्पनिक जीवन से हटकर यथार्थ की भूमि पर पाया। पात्र, चरित्र-चित्रण, भाषा, वेश-भूषा-सभी में यथार्थ चित्रण की अभिरुचि इस युग की विशेष प्रवृत्ति है। ___यथार्थवादी प्रगतिशील समस्या-प्रधान नाटक लिखने का सर्व प्रथम श्रेय श्री लघमीनारायण मिश्र को है। 'राजयोग', 'राक्षस का मंदिर', 'संन्यासी', 'मुक्ति का रहस्य' तथा पिन्दूर की होली' लिखकर इन्होंने हिन्दी में नई धारा प्रारम्भ की। ‘राक्षम का मंदिर' 'संन्यासी' में उन्मुक्त प्रेम की वकालत है। यथार्भ के चरणों पर मुक्त रूप से चुम्बनों की वर्षा की गई है।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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