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________________ २६ हिन्दी नाटककार जन-जीवन का चित्रण रहता। पूरे संस्कृत साहित्य में केवल शूद्रक का एक 'मृच्छकटिक' न होता, सैकड़ों ऐसे नाटक रचे गए होते। दुखान्त नाटकों के प्रभाव का कारण भारतीय जीवन-दर्शन का पलायनवाद भी है । यथार्थ से मुख मोड़ना - काल्पनिक परलोक में श्रानन्द के लिए भटकना भारतीय जीवन का विशेष दर्शन है । इसलिए साहित्य, काव्य, कला सबमें परलोक का भुलावा अवश्य जोड़ दिया गया । जीवन की यथार्थ वेदनाओं, विफलताओं कटुताओं और कठोरताओं की ओर से आँख मीचकर, काल्पनिक जीवन की मधुरताओं, सफलताओं, वैभव और श्रानन्द की ओर ही ध्यान दिया गया । परिमाण में हुआ-सुखी जीवन का चित्रण, श्रानन्द-उल्लास का साहित्य-निर्माण । जीवन के करुण पक्ष की उपेक्षा की गई। तब यहाँ दुःखान्त नाटकों की सृष्टि कैसे होती ? कहा जा सकता है, हिन्दी-साहित्य तो जन-जीवन के श्रत्यन्त निकट है। जन-जीवन का चित्रण भी इसमें है । आदर्शवाद भी इससे कभी का पलायन कर चुका । राजा-रईसों के लिए यह लिखा भी नहीं जा रहा। तब हिन्दी में दुःखान्त नाटक क्यों नहीं ? साहित्य के अन्य अंग जनता की चीज है, इसमें सन्देह नहीं, पर नाटक अभी तक जनता की वस्तु नहीं। कितने पाठक हैं arrai के ? किन नगरों में किन नाटकों का अभिनय किया जाता है ? नाटकों की खपत कितनी है ? -नहीं के बराबर । ये जनता के लिए जिखे भी नहीं जा रहे । आज राजाओं-महाराजाओं के लिए न सही, कोर्स में लगने जिए अधिकतर नाटक लिखे जा रहें हैं। कोर्स में लगे नाटकों की बिक्री भी है। नाटकार तो कम-से-कम आज भी स्वतन्त्र नहीं । श्राश्रयदाता का नाम बदला है । पहले राजा-महाराजा थे, आज विश्वविद्यालय - शिक्षा विभाग है ? जनता में रुचि कहाँ ? पैदा भी कहाँ की जाती है ? लेखकों को जीवित रहना है जीवित रखने वाले शिक्षा विभाग हैं- विश्वविद्यालय हैं । प्रसादोत्तर काल के अधिकतर नाटककार नाटकीय प्रतिभा के बल पर नहीं, पाठ्यक्रम में स्वीकृत होने के लिए नाटक लिखकर नाटककार बने हैं। इस काल के अधिकतर नाटकों में जन-जीवन की झाँकी पाना असम्भव है। इनमें यथार्थ जीवन का चित्रण नहीं, शिक्षा विभाग के नियमोप नियमों की माँग और शिक्षा समिति के सदस्यों की रुचि का विनम्र उत्तर ही मिलेगा | इतिहास का मोह भी अभी हिन्दी नाटककार को बुरी तरह दबोचे हैं । अपने इतिहास की उपेक्षा, अपराध है; पर वर्तमान जीवन की उपेक्षा श्रात्मघात है । केवल इतिहास से चिपटे रहना, जड़ता है । यही जड़ता हिन्दी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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