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________________ २६० हिन्दी के नाटककार जब इनकी रामायण नगर-नगर में बाँची जाती थी। यह स्वयं बहुत सफल, मधुर और प्रभावशाली कथावाचक रहे हैं । हिंदी को रङ्गमंच पर लाने का श्रेय इनको भी है । इन्होंने अपने नाटकों के लिए पौराणिक जीवन-क्षेत्र चुना । 'न्य एलफ्रड, सूर-विजय, कोरंथियन, ग्रेट शाहजहाँ, आदि कम्पनियों के लिए इन्होंने अनेक हिन्दी-नाटकों की रचना की। राधेश्याम जी का सबसे पहला नाटक 'वीर अभिमन्यु' है। यह सन् १६१४ में 'न्यू एल्कड' के लिए लिखा गया था। उसी वर्ष इसका अभिनय भी किया गया। नाटक बहुत सफल रहा और यह सबसे पहला हिन्दी-नाटक है, जिसका अभिनय पारसी-स्टेज पर हुआ । इसलिए हिन्दी को पारसी-रङ्गमंच पर लाने का सर्व प्रथम श्रेय राधेश्याम जी को ही मिलना चाहिए। 'वीर अभिमन्यु' के अतिरिक्त उन्होंने 'परिवर्तन', 'मार की हुर', कृष्णावतार', 'रुक्मिणी मङ्गल', श्रवण कुमार', 'ईश्वर भक्ति', भक्त प्रहलाद', 'द्रोपदीस्वयंवर', 'उधा-अनिरुद्ध', वाल्मीकि', 'शकुन्तला' तथा 'सती पार्वती' इत्यादि नाटक लिखे । राधेश्यामजी के नाटकों से पहले पारसी-रङ्गमंच पर अश्लील भद्द, अर्थशून्य और शिक्षाहीन नाटकों का ही प्रचलन था। दर्शकों की रुचि इतनी बिगड़ चुकी थी कि अच्छे नाटकों को अवसर ही नहीं था। राधेश्याम जी ने इस स्थिति को बदला । दर्शकों में सुरुचि उत्पन्न की। अपनी प्रतिभाशाली लेखनी से धार्मिक, शिक्षाप्रद, सुरुचिपूर्ण और उच्च कोटि के रङ्गमंचीय नाटक प्रसूत किये । इनके सभी नाटक सफल रहे .--'अभिमन्यु ने विशेष रूप से ख्याति प्राप्त की। ___ राधेश्याम के नाटकों में भी अतिमानवीयता, आश्चर्यजनक घटनाओं का अपने-अाप घट जाना, चरित्र को अतिवादिता आदि हैं। सभी चरित्र अपने गुणों-~-दुर्गुणों के चरम विकसित रूप है। अपने वर्ण के प्रतिनिधि हैं । दुष्ट इतना दुष्ट कि दर्शकों को उस पर क्रोध याने लगे और सज्जन इतना श्रादर्शवादी कि उसका तनिक भी कष्ट देखकर दर्शक आँसू भर लाए । दुष्ट और सज्जन पात्रों का सघन संघर्प भी इनके नाटकों में है। पारसी-रङ्गमंच की हास्यास्पद भूलें भी इनके नाटकों में मिल जायंगी। जरा देर में पात्र रो रहा है और जरा देर में गाने लगता है। स्वगन और प यात्मक संवाद तो भरे पड़े हैं। गीतों की भरमार भी मिलेगी, ये सभी दोप उस युग के नाटकों के अनिवार्य अंग बने हुए थे। प्रमुख कथा के साथ ही वर्तमान जी बन के एक हास्य की कथा नाटक के अंत तक चलती है । 'अभिमन्यु' में जैसे रायबहादुर की कहानी और श्रवण कुमार
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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