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________________ भारतेन्दु-मण्डल १४५ राधाकृष्णदास, श्रीनिवासदास, किशोरीलाल गोस्वामी तथा देवकीनन्दन त्रिपाठी। पौराणिक कथाओं को लेकर इस युग में अनेक नाटकों की रचना हुई; पर उनमें नाटकीय तत्त्व बहुत कम रहा-कला का विकास भी उनसे न हो सका । 'सीता हरण', 'रुक्मिणी-हरण' ( देवकीनन्दन त्रिपाठी ), 'सीता वनवास' (पालाप्रसाद मिश्र ), 'उषा-हरण' (चन्द्र शर्मा ), 'श्री दामा' ( राधाचरण गोस्वामी ), 'प्रहलाद-चरित' (श्रीनिवासदास ), 'दमयन्तीस्वयंवर ( बालकृष्ण भट्ट ) आदि नाट क लिखे गए। इनमें कोई भी रचना सफल नाटक का पद प्राप्त नहीं कर सकती। इनकी कथावस्तु में कौतूहल तथा कार्य-व्यापार आदि की कमी है। आदर्श चरित्रों को लेकर उपदेश देने का ही प्रयास इनमें पाया जाता है। चरित्र, धर्म और सभ्यता सम्बन्धी विचारों को संवाद रूप में कह दिया गया है, बस यही इनमें नाटकीयता मिलती है। भारतेन्दु की कला के विकास का इसमें तनिक भी अाभास नहीं मिलता। ऐतिहासिक नाटकों की ओर भी लेखकों ने पग बढ़ाया। इस काल में 'पद्मावती' और 'महाराणा प्रताप' (राधाकृष्ण दास), 'तीन परम मनोहर ऐतिहासिक रूपक' ( काशीनाथ खत्री ), संयोगिता-स्वयंवर ( श्रीनिवास दास), 'अमरसिंह राठौर' ( राधाचरण गोस्वामी ), 'मीराबाई' (बलदेवप्रसाद मिश्र) श्रादि नाटकों की रचनाएं हुई। प्रतापनारायण मिश्र के 'हठी हमीर' और बालकृष्ण भट्ट के 'चन्द्रसेन' का भी नाम इस युग के ऐतिहासिक नाटकों में लिया जाता है; वे दोनों ही अवाप्य हैं । ऐतिहासिक नाटकों में राधाकृष्णदास का 'महाराणा प्रताप' अपने युग का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। वीर रस का इसमें बहुत ही अच्छा परिपाक हुआ है । युग का विचार करते हुए यदि पालोचनात्मक दृष्टि से देखें तो इसके संबाद भी बहुत सफल स्फूर्ति मय, रसपूर्ण और सशक्त हैं। स्वगतों की भरमार इसमें अवश्य है । पद्य भी बहुत अधिक हैं । पर उस काल में नाटकों का इतना विकास नहीं हुआ था कि नाटककार इन अस्वाभाविकताओं से अपना पीछा छुड़ा सकता । 'अमरसिंह राठौर' भी बहुत अच्छी और सफल रचना है। इसमें प्रौढ़ता के लक्षण मिलते हैं। 'अमरसिंह' के संबाद उस काल के सफल, सशक्त और गतिशील संवादों में गिने जायंगे । 'संयोगिता-स्वयंवर' बहुत ही निर्बल रचना है। ___इस युग में जो देश-भक्ति-सम्बन्धी नाटक लिखे गए, वे प्रायः सभी असफज और कला-विहीन हैं । 'भारत भारत' ( खंगबहादुर मल्ज ), 'भारत
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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