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________________ वृन्दावनलाल वर्मा २४३ कला का भी वर्मा जी के नाटकों पर प्रभाव है। दृश्य के भीतर दृश्य दिखाना फिल्मों को अत्यन्त साधारण और रोचक बात है। इसी प्रकार के दृश्य के भीतर दृश्य वर्माजो ने भी अपने नाटकों में रखे हैं। 'वीरबल' के दूसरे अङ्क का तीसरा दृश्य, जिसमें ग्रामीण अकबर की नकल उतारते हैं, इसी प्रकार का दृश्य है। खिलौने की खोज' के तीसरे अङ्क का सातवाँ दृश्य भी ऐसा ही है। दृश्य-विधान में कहीं-कहीं विचित्र कठिनाइयाँ भी हैं, पर वे बहुत कम । 'राखी की लाज' के पहले अंक का छठा दृश्य इसी प्रकार के कई छोटे-छोटे दृश्यों का योग है। डाकू बालाराम के मकान के सामने की सड़क पर खड़े हो जाते हैं। तीन-चार आदमी अन्दर जाकर दरवाजा खोल देते हैं। अन्दर का दृश्य सामने आ जाता है। चम्पा और बालाराम दिखाई देते हैं। चाँदखाँ अपना दरवाजा खोलकर सड़क पर खड़े डाकुओं पर पिल पड़ता है। अपना घर खुला छोड़कर चम्पा के घर में प्राता है । इस दृश्य में तीन दृश्य-चम्पा का घर, सड़क और चाँदखाँ का घरसाथ-साथ दिखाये जाते हैं। रंगमंच पर तो इनका दिखाया जाना सर्वथा असम्भव है । इसी प्रकार पहले अंक का आठवाँ दृश्य भी है। दृश्य-विधान के सम्बन्ध में इतना और कह देना ठीक होगा कि 'पूर्व की ओर' का पहला अंक बिलकुल निरर्थक है। उसमें केवल अश्वतुङ्ग के देश-निकाले की भूमिकामात्र है, जिसके लिए एक दृश्य ही पर्याप्त था । सम्पूर्णता की दृष्टि से देखा जाय तो वर्मा जी के प्रायः सभी नाटक अभिनय के योग्य हैं। अनेक नाटक अभिनीत भी हो चुके हैं। दृश्य-विधान की सरलता, भाषा को उपयुक्तता और गतिशीलता, संवादों की संक्षिप्तता और औचित्य इनके नाटकों को अभिनय के उपयुक्त बनाने में अत्यन्त सहायक हैं । चरित्र चित्रण की सघनता और उलझन में वर्मा जी कम उतरे हैं, इससे दर्शक को इनके नाटक समझने में कठिनाई नहीं होती। चरित्र-चित्रण या मनोवैज्ञानिक उलझनों को सुलझाने में प्रयत्नशील रहने की अपेक्षा वर्मा जी अपने नाटकों को अभिनयोपयुक्त बनाने में अधिक सचेष्ट रहे हैं। वर्मा जी का यह भी प्रयास रहा है कि इनके नाटक जन-साधारण की पहुंच के बाहर न हों। भले ही इनके द्वारा किसी नवीन कला या टैकनीक का निर्माण नहीं हुश्रा, महान् चरित्रों की भी सृष्टि वर्मा जी नहीं कर सके; पर सर्वसाधारण के लिए इन्होंने अच्छे शिक्षाप्रद, अभिनयोपयुक्त नाटकों की रचना अवश्य की । यही वर्मा जी की सबसे बड़ी सफलता है। इनके नाटकों से हिन्दी-रंगमंच का साहस अवश्य बढ़ेगा-उसमें श्रात्म-विश्वास भी जाग्रत होगा।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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