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________________ वृन्दावनलाल वर्मा बीरबल-(मुस्कराकर) जहाँपनाह बड़े परोपकारी है। दूसरों को मारने के प्रयास का कष्ट न करने देकर स्वयं पिल पड़ते हैं। आज आप काफी जानवरों को मार चुके हैं, अब आदमियों का शिकार शुरू कर दीजिए। आपने जिस जैन साधु को गुजरात से बुलाया है, वह आपके मन को बदलने के लिए कितनी दूर से पैदल आ रहा है। उसको जहाँपनाह यहाँ आते ही मार दें तो बड़ा नाम होगा और इतना आतंक फैल जायगा कि गांवों के लोग आपकी किसी तरह की भी नकल नहीं उतारेंगे।" _ 'पूर्व की ओर' की धारा के चरित्र का विकास बहुत सुन्दर और स्वाभाविक हुआ है। वह जंगली लड़की धीरे-धीरे किस प्रकार अश्वतुङ्ग से प्रेम करने लगती है। यह दिखाने में वर्मा जी को सफलता मिली है। जंगली कठोर, निर्दय जीवन से प्रेम-पाकुल कोमल-हृदय सभ्य नारी में उसका परिवर्तन एक सफल चित्रण है। ___ सामाजिक नाटकों के पात्रों में भी सघन, गहरे और प्रभावशाली रंग वर्माजी नहीं भर पाए। एक सफल और विख्यात उपन्यासकार वर्माजी, जिनसे चरित्रों के महान् निर्माण की प्राशा की जा सकती थी, अपने नाटकीय चरित्रों में कोई उल्लेखनीय बात पैदा नहीं कर पाए। 'राखी की लाज', 'बाँस की फाँस', 'सगुन', तथा 'पीले हाथ में प्रायः सभी चरित्रों के ऊपरी स्तर की तस्वीरें है। पात्रों में घटनाओं या परिस्थितियों से कोई स्मरणीय नवीनता या विचित्रता नहीं आ पाई। ये सभी नाटक घटना-प्रधान होने से चरित्र की गहनता और गम्भीरता में निर्बल रह गए। 'बाँस की फाँस' के गोकुल और मंदाकिनी में अवश्य चरित्र की रंगीनी श्रा सकी है। परिस्थितियों के अनुसार उनका विकास भी सुन्दर है। ___ चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'खिलौने की खोज' वर्माजी का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। इसके चरित्रों में एक प्रकार की घुटन है। उनमें धीरे-धीरे दम-घोट बेचैनी के अन्धकार से स्वस्थ और विश्राम के प्रकाश में आने का प्रयास है। डॉक्टर सलिल और सरूपा में चरित्र की बेबसी है। दोनों का बचपन का प्रेम पनपकर हृदय के मरघट मे ही सो गया; पर इसको न सलिल ही भूल सका और न सरूपा ही । बलपूर्वक उन पुरानी मधु-भीनी स्मृतियों को दबाना जीवन के स्वास्थ्य और शान्ति से खेलना है । यही हुआ भी। सरूपा का खिलौना, केवल ने डॉक्टर सलिल के पास से चुरा लिया। सलिल क्षय से पीड़ित था। खिलौने की स्मृति उसकी आँखों में पिछली तस्वीरें बनकर श्रा गई । सरूपा ने जब उस खिलौने को अपने घर में देखा
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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