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________________ सेठ गोविन्ददास २१३ गोविन्ददास जी के नाटकों में कला अवश्य है; पर उसमें लगातार विकास के दर्शन नहीं होते । संख्या की दृष्टि से शायद इन्होंने सबसे अधिक नाटक लिखे हैं। पर कला का कोई ऊँचा स्तर इन्होंने स्थापित नहीं किया। 'प्रसाद' 'प्रेमी' लक्ष्मीनारायण मिश्र आदि ने जिस प्रकार हिन्दी नाट्य-कला को उन्नत करने में सफलता दिखाई, वैसा प्रयास भी इनके नाटकों में कम ही मिलता है। नाटक अच्छे हैं, बुरे नहीं; पर कोई ‘स्थापना' इनके नाटकों में देखने को नहीं मिलती। अभिनेयता अभिनेयता का सम्बन्ध जहाँ तक दृश्य-विधान से है, गोविन्ददास जी के नाटकों की दृश्य-रचना अधिकतर सरल और सुगम है। कई नाटकों के अंक ही दृश्य हैं । 'दुःख क्यों', 'महत्त्व किसे', और 'बड़ा पापी कौन' सबमें चार-चार अङ्क हैं । और ये अङ्क ही दृश्य । इन तीनों नाटकों के सभी दृश्य आसानी से निर्मित किये जा सकते है। ये तीनों नाटक सामाजिक हैं-वर्तमान जीवन के विषय में । प्रायः सभी अंक-दृश्य घर के एक-एक कमरे के हैं। 'दुःख क्यों' का अन्तिम दृश्य मजिस्ट्रेट की अदालत का है, शेष घर के ही। दृश्य न तो इतने विशाल ही हैं, न इतने सुसज्जित और राजसी कि उनके बनाने में कठिनाई हो । और यदि एक के बाद दूसरे के निर्माण में कुछ देर भी अपेक्षित हो, तो वे अंक हैं। दो अंकों के बीच समय मिल ही जाता है। कार्य-व्यापार की दृष्टि से 'दुःख क्यों' में अभिनय-सम्बन्धी कार्य-न्यापार की कमी नहीं। तीसरा और चौथा अंक अभिनय की तीव्रता से पूर्ण है। अन्तिम दृश्य का अन्तिम भाग तो बहुत सफल है। भाषा और संवाद की दृष्टि से भी यह नाटक लेखक के श्रेष्ठ नाटकों में है । और उनके सब नाटकों में सबसे असफल नाटक है । 'महत्त्व किसे' में न कार्य-व्यापार है, न घटना और चरित्रों का तीखापन । 'बड़ा पापी कौन' में देवनारायण की मृत्यु तो एक घटना है ही इस पात्र के अभिनय में भी गतिशीलता है। भाषा भी इसकी अच्छी है। इसका भी अभिनय हो सकता है । 'महत्त्व किसे' का अभिनय दृश्य-विधान की दृष्टि से तो सरल है, पर उसमें अभिनय-तत्वों का अभाव होने से उसका प्रभाव तनिक भी नहीं पड़ सकता । अन्य दृष्टि से भी यह नाटक असफल है। विस्तार की दृष्टि से भी तीनों नाटक बड़े नहीं हैं। 'दुःख क्यों' ११४, 'महत्त्व किसे' १८, और 'बड़ा पापी कौन' ५३ पृष्ठों का है। इनमें से किसी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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