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________________ सेठ गोविन्ददास २०१ लेने के लिए त्याग करना-लीडरी को पेशा बनाना-अाज भी अनेक नेताओं के महान् गुण हैं। लेकिन प्रश्न यह है इनकी पहचान कैसे हो ? अभी तक तो ऐसा कोई भी पैमाना नहीं बना । भण्डा फूटने पर ही पता चलता है और अनेक प्रभावशाली धूर्तों का तो अंत तक पता चलता ही नहीं। अाज देश में श्राम नेता कोई भी व्यवसाय, व्यापार, नौकरी नहीं करते-सभी जनता का पैसा पी जाते हैं। आवश्यकता है, सबल जन-सम्मति तैयार करने को कि ऐसे धूतों को खुले बाजार में निन्दित किया जा सके । 'महत्त्व किसे' में धन खोकर देश-सेवा करते हुए दरिद्रता को गले लगाना ठीक है या धन कमाते हुए देश-सेवा करना ठीक-यही दिखाया गया है। यह नाटक सामाजिक प्रश्न पर नहीं, व्यक्तिगत प्रश्न पर प्रकाश डालता है। हल कुछ भी नहीं दिया गया, यह पाठकों पर छोड़ दिया गया है। 'बड़ा पापी कौन' 'महत्त्व किसे' से अधिक सामाजिक है। देवनारायण प्रकट रूप से वेश्या रखता है और रमाकांत छिप-छिपे अपनी साली को रखे है। पर समाज में बड़ा पापी है देवनारायण । देवनारायण किसी का गला नहीं काटता, तनखा कम नहीं करता, दान आदि भी देता है और रमाकांत मिलमजूरों का वेतन कम करता है, अनेक क्लर्कों को निकाल देता है, छिपे-छिपे देवनारायण के विरुद्ध कार्य करता है, तो भी वह पापी नहीं। वास्तव में पापी तो है रमांकात ही, देवनारायण नहीं। पर समाज उन बातों को पाप कहता है, जिससे सचमुच उसे कोई हानि नहीं और उनको पाप नहीं कहता, जिनसे सीधे रूप में समाज को हानि है। सेठ गोविन्ददास ने अपने नाटकों में समाज और व्यक्ति की समस्याए ली हैं। पर वे बहुत ही हल्की हैं। मनोवैज्ञानिक समस्याएं वे नहीं ले सके और न व्यक्ति को ही उन्होंने अपने नाटकों में प्रमुख रूप से लिया। इस क्षेत्र में अभी तक तो लक्ष्मीनारायण मिश्र का ही नाम उल्लेखनीय है । काम और रोटी की समस्या वर्तमान जीवन की प्रमुख समस्या है, जिसको गोविन्ददास जी ने नहीं छुआ। फिर भी उनका ध्यान समाज और व्यक्ति की ओर है अवश्य । 'दुःख क्यों' में सुखदा और ‘महत्त्व किसे' में सत्यभामा का व्यक्तित्व स्वाधीन रखने का खूब प्रयत्न किया गया है। पात्र-चरित्र-चित्रण सेठ जी ने अपने नाटकों के कथानक और चरित्र सभी कालों और क्षेत्रों से चुने हैं। 'कर्तव्य' (पूर्वार्ध), 'कर्तव्य' (उत्तरार्ध) और 'कर्ण' पौराणिक नाटक
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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