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________________ १६० हिन्दी के नाटककार तैयार करने के लिए या लम्बा भाषण सुनने के बाद घबराये हुए दर्शक को धीरज देने के लिए अधिकतर पद्यात्मक गीतों का प्रयोग किया गया है। दूसरा प्रयोग है पारसी-स्टेज के ढंग का-हरेक पात्र को गाने के लिए विवश करना। 'कमला' में भट्ट जी ने अस्वाभाविकता और उद्देश्यहीनता को अनुभव किया और उसके अन्त में केवल एक गीत रखा। और वह गीत संगीत, वातावरण, भाषा की स्वच्छता, राग की तन्मयता से पूर्ण है। 'मुक्ति-पथ' के गीत चरित्र, नाटकीय स्थिति और अनुरोध की दृष्टि से अच्छे हैं, पर उनमें संगीत-संबंधी दोष हैं। साहित्य का बोझ भी उन पर लदा है । पंक्ति के प्रारम्भ में 'स्मय', 'स्मृति', 'क्षितिज' और अंत में 'विह्वल' आदि शब्द संगीत के शत्र हैं। और 'तजता ग्रीष्माकुल समुच्छवास'-जैसी पंक्तियाँ स्वरों में बाँधना अत्यन्त कठिन है। ___भाषा और संवादों में भी धीरे-धीरे विकास होता दीखता है। 'विक्रमादित्य' में भाषा पर संस्कृत-शैली का बहुत बोझ लदा है। अलंकारों की उलझन और शब्दाडम्बर की भीड़-भाड़ में भाव दब गए हैं। संस्कृत का ऐसा अस्वास्थ्यकर और अरुचिकर प्रभाव हिन्दी के किसी नाटककार पर नहीं पड़ा । प्रमाद का भी प्रभाव स्पष्ट मालूम होता है, पर वह रंगीनी स्वच्छता, काव्यमयता, सुकुमारता न आ पाई, उलझन अवश्य बढ़ गई। ___ 'विक्रमादित्य' से एक उद्धरण लीजिए-"इसी के अनुसार शकट के दो पहियों के समान हम सुख-दुःख के कार्य-कलाप-रूपी मार्ग को तय करते हैं; परन्तु इस जीवन में सुख की पराकाष्ठा-रूप दृष्टिकोण के रथ पर बैठे हुए अकर्तव्य के स्वकल्पित चाबुक लेकर लालसा के घोड़ों को निज बुद्धि-जन्य विवेक की लगाम से अनवरत दौड़ाते चले जाते हैं।....विश्व-वैभव की भड़कीली पर्वत-चोटियों पर चढ़ने के लिए हमें मार्ग की कठिनाइयों को दूर - करने के लिए अवसर रूप वृक्ष की छाया में बैठकर बुद्धि-चातुर्य का पानी पीते हुए उसी उद्देश्य की ओर अविरत गति से बढ़ना पड़ता है।" 'दाहर' में हैजाज़ कहता है ''मद की उत्तेजना को पचा जाना ही उसकी विशेषता है । जिस दिन में इस उत्तेजक वारुणी को "ट-चूंट करके पी लूंगा, जिस दिन सिंध की वासन्ती सुरभि के उन्मत्त मकरन्द-कण मेरे क्रोध की उत्तप्त ऊष्मा में से छन-छनाकर भस्म हो जायंगे, उस दिन मेरे हृदय में शान्ति की लहर धीमी, किन्तु उत्कटता के अनुपम राग के साथ सुख की रेखाएं, दिखला सकेगी।"---पचास शब्द का वाक्य है । बोलने वाले के फेफड़ों की परीक्षा हो जाती है।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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