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________________ उदयशंकर भट्ट देश पद-दलित रहेगा। ‘शक-विजय' में धर्म का यही विनाशक रूप भट्टजी ने रखा है। सम्भवतः जैन-ब्राह्मण-धर्म के संघर्ष का हिन्दी में यह प्रथम नाटक है। भंखलीपुत्र ब्राह्मण धर्म के नेता हैं और कालकाचार्य जैन-धर्म के। दोनों का संवर्ष इस नाटक की कहानी है। कालकाचार्य अवन्ती में जैन-धर्म का प्रचार करने आया है । सरस्वती (उसकी बहन) साध्वी बन गई है। उसके सौन्दर्य से आकर्षित होकर उसके आश्रम में अवन्ती-निवासियों की भीड़ लगी रहती है। इससे राष्ट्र-धर्म को खतरा है। देश की उस समय की राजनीति बड़ी डावाँडोल है—देश पर विदेशियों का तो दाँत है ही पारस्परिक शक्तिवर्धन को भी स्पर्धा है। इसी कारण सरस्वती को बन्दी बना लिया जाता है। ___ कालकाचार्य के हृदय को आधात लगाना स्वाभाविक है, पर उसने जो प्रण किया वह देश-द्रोह का घृणित उदाहरण है। वह बोला, 'मैं अन्य राजाओं की सहायता लेकर अवन्ती को भम्म कर दूंगा।" और प्राचार्य कालक की धर्म की परिभाषा, “धर्म के लिए कोई देश-विदेश नही है । पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने का व्यक्ति धर्म में श्रद्धा रखने के कारण एक हैं। साहिर (शकराज) ने स्वयं ज्ञात-पुत्र के धर्म को स्वीकार कर लिया है, फिर वे विदेशो कैसे है नृपतिगण ! वे भी उली तरह जैन हैं, जिस तरह आप । धर्म जाति-देश का बन्धन नही स्वीकार करता नृपतिगण ।" कालकाचार्य द्वारा की गई धर्म की परिभाषा ने ही अवन्ती पर विदेशियों के अाक्रमण का सूत्रपात किया । वही हुआ, जो होना था । अधन्ती पर शकों का शासन हो गया। विदेशियों के अत्याचार और उत्पीड़न का दौर प्रारम्भ हुआ । सरस्वती पर भी शकराज की वासना-दृष्टि गई। धर्म के उन्माद में कालकाचार्य ने जन्म-भूमि के गर्वोन्नत मस्तक को पैरों तले रौंद डाला । देशदोह, विश्वास-घात, बन्धु-संहार, हत्या और बलात्कार सभी इस उन्माद में खुलकर खेले । ___ इस धार्मिक अविवेक ने हमें कहाँ-से-कहाँ ला दिया यह भट्टजीके शब्दों में देखिये-"हमारी जातीयता में धर्मवाद की निकम्मी थोथी रूढ़ियों ने हमें विवेक से गिरा दिया। मनुष्यत्व से खींचकर दासता, भ्रातृ-द्रोह, विवेक-शून्यता के गढ़े में ले जाकर पीस दिया।" ___ भट्टजी ने अपने नाटकों द्वारा धार्मिक कट्टरता,साम्प्रदायिक जनून, मजहबी पागलपन का जो रूप उपस्थित किया है वह प्रशंसनीय है। यह सचमुच ऐसा नशा है, जिसमें आदमी अपने पैरों आप ही कुल्हाड़ी मारता है.-स्वयं
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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