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________________ १६६ हिन्दी के नाटककार पर तुम शस्त्र का प्रयोग करोगे?" उदयन का यह प्रश्न ही भविष्य की श्राशंका टाल देता है। उधर ने पथ्य में 'बुद्धं शरणं गच्छामि' की ध्वनि अाती है । वासवदत्ता और उदयन व्याकुल हो उठते हैं, और पद्मावती माँ की ममता से आहत छटपटाती हुई 'कुमार-कुमार' करती प्रवेश करती है। समस्त वातावरण करुणा, धड़कन, व्यथा और अाकुल चंचलता से बेताब हो उठता है । उदयन स्वयं बेसुध हो जाता है। वासवदत्ता और पद्मावती पुत्र का मोह छोड़कर पति की सेवा में लग जाती हैं । थोड़ी देर के बाद कुमार और श्रमण प्रवेश करते है । यहाँ भी दर्शक की जिज्ञासा की अतृप्ति और भी बढ़ती जाती है-न जाने कुमार भिनु न बन जाय; पर अंत में कुमार राज. धर्म पालन करने पर राजी हो जाता है और उदयन अपनी दोनों रानियों के साथ वानप्रस्थ लेने को तैयार होता है। ___ 'वत्सराज' का तीसरा सम्पूर्ण अङ्क नाटकीय गुणों से ओत-प्रोत है। यह मिश्र जी का सबसे अधिक स्फूर्तिमय, गतिशील, प्रभावशाली, कौतूहलवर्द्धक और शक्तिशाली दृश्य है । यदि ऐसे ही दृश्य उनके अन्य नाटकों में भी होते उनके सभी नाटक नाट्य-कौशल के आदर्श हुए होते । ___ कार्य-व्यापार और गतिशीलता के इस अभाव की पूर्ति करने और एक ही समय और अंक की सीमा में बहुत-कुछ भरने के लिए लेखक ने 'प्रवेश' और 'प्रस्थान' की बड़ी भीड़ लगा दी है । 'संन्यासी', 'राक्षस का मन्दिर', 'सिंदूर की होली', 'राजयोग', 'मुक्ति का रहस्य', 'आधी रात' सभी में बहुत जल्दीजल्दी प्रस्थान और प्रवेश का तांता लग जाता है। इसका कारण है, कई दृश्यों की घटनाए या चरित्र-विकास एक ही दृश्य में दिखाने का प्रयत्न करना । 'राक्षस का मन्दिर' में पहले अंक में यह प्रवृत्ति भ६ प्रदर्शन का रूप धारण कर चुकी है। मि० बैनर्जी के आने से पहले मनोहर (मुनीश्वर) और अश्गरी का प्रस्थान ठीक है । बैनर्जी और रामलाल बातें करते हैं । मुनीश्वर पाता है । बैनर्जी और उसकी बातें होती हैं । अश्गरी संकेत करती है श्राकर, और रामलाल का प्रस्थान । और दो ही संवाद के बाद फिर प्रवेश । एक पृष्ठ के सम्वाद के बाद रामलाल बैनर्जी का प्रस्थान । अश्गरी का प्रवेश । दोनों में चुम्बन आलिंगन होने देने के लिए ही मानो दोनों बाहर जाते हैं।। ___ थोड़ी देर बाद रामलाल का प्रवेश होता है। और शराब पीकर फिर प्रस्थान । मुनीश्वर की औरत दुर्गा के जाने पर फिर प्रवेश और रघुनाथ के श्राने से पूर्व फिर प्रस्थान । इस प्रवेश-प्रस्थान प्रवेश को देखकर लगता है, जैसे लेखक महोदय एक ओर पर्दे की आड़ में खड़े हैं। वह अवसर-बे अवसर पात्र
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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