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________________ लक्ष्मीनारायण मिश्र बीसवीं शताब्दी जीवन की नई उलझनें लेकर आई । अतीत की अपेक्षा वर्तमान ने सजग साहित्यकों और विचारकों का ध्यान अपनी ओर अधिक आकर्षित किया। फलस्वरूप यूरोप में प्राचीन ऐतिहासिक या काल्पनिक नाटकों की प्रतिक्रिया प्रारम्भ हुई । अतीत के काल्पनिक प्रासादों में शरण लेने की अपेक्षा विचारक लेखकों ने वर्तमान के यथार्थ जीवन के जीर्ण-जर्जर भवनों की मरम्मत करना ही अधिक श्रेयस्कर समझा। यूरोप में इब्सन, स्टूण्ड, शॉ श्रादि विचारकों ने नाटकों की प्रवृत्ति ही बदल दी । सामाजिक . समस्या-नाटकों की रचना होने लगी। इन महान् कलाकार विचारकों का प्रभाव भारतीय साहित्य पर भी पड़ा। हिन्दी भी नये प्रकाश से मुंह कैसे फेर लेती । हिन्दो में भी समस्या-नाटक लिखे जाने प्रारम्भ होने लगे। यों तो 'प्रसाद' जी ने ऐतिहासिक श्राधार लेकर 'ध्र व स्वामिनी' लिखा था। वह भी नारी और शासन की समस्याओं का हल है। पर समाज की नवीन जीवन-सम्बन्धी मस्याओं को विशाल रूप में लिया श्री लक्ष्मी नारायण मिश्र ने । हिन्दी में वर्तमान समाज के यथार्थ जीवन की उलमनभरी समस्याओं को लेकर नाटक लिखने का सर्व-प्रथम श्रेय लक्ष्मीनारायण मिश्र को है। मिश्र जी ने हिन्दी-नाटकों में एक नवीन विचार-पद्धति को जन्म दिया है। टैकनीक भी श्रापने नवीन दी है और भावुकता से बहुत-कुछ पीछा छुड़ाकर नाटक-साहित्य को विचार-प्राधान्य की ओर मोड़ा। 'प्रसाद' जिस प्रकार अतीत भारतीय गुण-गौरव के गायक हैं, प्रेमी मध्यकालीन सामन्ती युग के शौर्य और शक्ति के चितरे हैं, उसी प्रकार लक्ष्मीनारायण मिश्र वर्तमान की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करने वाले प्रथम विचारक हैं। यद्यपि मिश्र जी ने 'अशोक' और 'वत्सराज' दो ऐतिहासिक नाटक भी लिखे हैं, पर श्राप हिन्दी में समस्या-नाटक-रचयिता के नाम से ही स्मरण किये जायंगे । शैली, प्रकार, (टैकनीक ) उद्देश्य और कला-कुशलता-सभी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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