SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ हिन्दो के नाटककार ही कर दिया गया। 'उद्वार' में एक भी स्वगत नहीं है । 'मित्र' में भी न के बराबर ही समझिए । 'स्वप्न-भंग' को छोड़कर विचार करें तो बहुत अच्छा विकास इसमें लेखक का रहा । पर 'स्वप्न-भंग' प्रेमी का छठा नाटक हैबीच की कड़ी । तो भी इसमें स्वगत की अरुचिकर, अस्वाभाविक और अनावश्यक भरमार है । यह नाटक भावोच्छवास से पूर्ण है, शायद इसीलिए भी स्वगतों की भीड़ लग गई, या जिन दिनों वह लिखा गया, लेखक की मानसिक अवस्था ठीक नहीं थी । इस नाटक में लगभग डेढ़ दर्जन स्वगत हैं और यह भी नहीं कि बहुत अावेश या उत्तेजना को अवस्था में-चाँद, ताज, बादल, तारे आदि को देखकर स्वगत चल रहा है। औरंगजेब, दारा, शाहजहाँ, रोशनारा, जहाँबारा, प्रकाश ही नहीं मालिन और सैनिक तक स्वगत-प्रलाप का अधिकार नहीं छोड़ना चाहते। ___ कार्य-व्यापार की दृष्टि से प्रेमी के सभी नाटक श्रेष्ठ हैं-'स्वप्न-भंग' को छोड़कर । 'रक्षा-बन्धन' का प्रथम दृश्य ही बड़ा रोमांचकारी नाटकीय, और अकस्मात् का नमूना है । शृङ्गार में रौद्र का शानदार मिश्रण ! दूसरे अंक का सातवाँ दृश्य कार्य-व्यापार और गतिशीलता में श्रादर्श है। प्रभाव की दृष्टि से इसमें वीरता, शौर्य, वात्सल्य का मनोहर चित्र है। अनेक दृश्य स्फूर्तिमय और गतिशीलता से पूर्ण हैं। 'शिवा-साधना' कार्य-व्यापार और घटनावली में अन्य सभी नाटकों से आगे है । कहानी घटनाओं की सीढ़ियों पर तीव्रता से चरण रखकर भागी चली जाती है। सभी घटनाए स्टेज पर ही घटती हैं । शाइस्ता का भागना, अफजलखाँ का वध, शाहजी का दीवार में चुना जाना, कई एक युद्ध-सभी में रोमांचकारी प्रभाव और गतिशीलता है। इसमें छोटे-छोटे दृश्यों में भी बड़ी तीव्रता है जैसे जहाँपारा कटार का लेकर औरङ्गजेब को मारने जाना । 'उद्धार' में भी प्रशंसनीय कार्य-व्यापार पाया जाता है। सुजानसिंह की नृत्य-सभा में अजयसिंह का प्रवेश 'रक्षा-बन्धन' के प्रथम दृश्य का रोमांचक वातावरण उपस्थित कर देता है। हमीर का भरे दरबार में मुञ्ज का कटा सिर लिये प्रवेश, अजय सिंह का विष द्वारा वध, तीसरे अंक के तीसरे दृश्य में कमला का प्रवेश विशेष नाटकीय महत्त्व रखते हैं। सभी नाटकों में अकस्मात् कौतूहल, रोमांच, अनाशितता का उचित समावेश है। कार्य-व्यापार की दृष्टि से 'स्वप्न-भंग' सबसे शिथिल नाटक है। इसमें घटनाएं केवल पात्रों के मुंह से सूचित की जाती हैं सामने रंगमंच पर नहीं घटती, यह नाटक का सबसे बड़ा दोष है। केवल एक दो दृश्य में ही कुछ गतिशीलता मिलती है, जैसे पहले अंक के छठे दृश्य :7 सहसा जहाँआरा का प्रवेश ।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy