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________________ हरिकृष्ण प्रेमी' 'प्रेमी' का साहित्यिक और भौतिक व्यक्तित्व अत्यन्त भोला, मधुर, आकर्षक और स्वच्छ है । उसके व्यक्तित्व में मूर्तिमान कवि का दर्शन होता है। प्रेमी ने व्यक्ति और कलाकार, दोनों के रूप में विश्व को प्यार किया हैउससे मिलने वाले कटु-मधु रस के चूट वह भावुकता-भरी पुतलियों और मुसकाते ओठों से पी गया है। प्रेमी के कवि की नाड़ियों में प्रेम की मधुर वेदना की कम्पन बजती है, उसके हृदय में मानवता की धड़कन बोलती है । कवि के रूप में-एक मुग्ध-मन शिशु के समान समस्त सृष्टि के फूलपत्तों को अाकुल होकर चूम लेने के लिए-वह साहित्य में आया। उसके नाटकों में उसका भोला कवि जहाँ-तहाँ झाँकता मिलेगा। पर कहीं भी अनधिकार अातंक स्थापित नहीं करता। प्रेमी ने जीवन की जलती चट्टान पर बैठकर समाज की उपेक्षा की लपटों में खेलते हुए अभावों का विष भी पिया है—बेबसी की वेदना का गरल भी वह पचा गया है और प्यार की मदिरा भी उसने पी है-ममता के पालने में भी वह झूलता रहा है। इन्हीं विपरीतताओं और विषमताओं के सम्मिलन से ही 'प्रमी' के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है। गरल पीकर वह और भी अमर हुअा है-अभावों ने उसे और शक्तिशाली बनाया है। . पत्रकार के रूप में प्रेमी ने साहित्य-जगत् में आँखें खोली, कवि के रूप में वह किशोर हुश्रा और नाटककार के रूप में उसमें जवानी श्राई । कवि के रूप में आँखों में', 'अनन्त के पथ पर', 'प्रतिमा', 'अग्नि-गान', 'रूप-दर्शन' 'वन्दना के बोल' आदि प्रेमी की श्रेष्ठ रचनाए हैं। नाटककार के रूप में उसने एक दर्जन नाटक लिखे हैं। एक ओर तो उसके स्वरों में प्यास की छट. पटाहट है और तृप्ति का सन्तोष है और दूसरी ओर उसकी वाणी के एकएक कम्पन में चिनगारियाँ हैं-उसके स्वर-स्वर में विश्व के अशिव, अमंगल
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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