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________________ ३२ [हिन्दी जैन साहित्य का जय सुहय सुहय रिउ विसहणाह, जय अजिव अजिव सासण सणाह । जय सम्भव सम्भव हर पहाण, जय गंदण णंदण पत्तणाण । हिन्दी में इसे यूँ पढ़ सकते हैं :जय शोभे सुभग ऋषि वृषभनाथ, जय भजित अजित शासन सनाथ । जय सम्भव सम्भव हर प्रधान, जय नन्दन नन्दित प्राप्त ज्ञान । इस चरित्र के रचे जाने का प्रसंग वर्णन करते हुए कवि लिखते हैं : इक्कहिं दिणि गरवर गंदणेण, सोमा जणणी आणंदणेण । जिनचरणकमल इन्दिदिरेण, णिम्मलयर गुणमणिमंदिरेण । अर्थात् एक दिन गरवर नन्दन ने, जो सोमा जननी का आनन्द है । वह जिनचरणकमल भ्रमर है, औ निर्मल गुणमणि मंदिर है। संवत् १३७१ में शत्रुञ्जयतीर्थ के उद्धारक समराशाह का रास श्री अम्बदेव ने रचा था। इस 'संघपति समरारास' की भाषा में राजस्थानी भाषा के शब्द अधिक दिखाई देते हैं :-- वाजिय सङ्ख असल नादि काहल दुडुदुडिया , घोड़े चडइ सल्लारसार राउत सिंगडिया । तउ देवालउ जो त्रिवेगि घाघरि खु समकह , समवि सम नवि गणइ कोई नवि वारिउ थक्का । सिजवाला घर धडहाइ बाहिणि बहुवेगि, धरणि धणक्का रजु उडए नवि सूसइ मागो। हय हींसह भारसह करइ वेगि वहह वहल्ल, सादकिया धहरह अबरु नवि देई कुछ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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