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________________ प्राक्कथन हमारे देशमें वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन, लिंगायत, सिख आदि धर्मके अनेक पन्थ प्रसिद्ध है। मेरे मन ये केवल धर्म पन्थ नहीं है, ये तो अध्यात्मप्रवण संस्कृतिकी अलग-अलग धाराएँ भी है। इनके दार्शनिक विचार और विचारभेदका अध्ययन करके हमें सन्तोष नहीं मानना चाहिए। मानवी जीवनको विशुद्ध, समृद्ध और कृतार्थ करनेके इन विविध और जीवनव्यापी प्रयत्नोंका अध्ययन हमें संस्कृतिको दृष्टि से भी करना चाहिए। तब जाकर इन महान् पन्थोंको मानव-सेवाका हमे यथार्थ खयाल आयेगा। ऐसे अध्ययनके लिए केवल दार्शनिक ग्रन्थोंका परिचय और इन पन्थोंके संस्थापकोंकी और उनके प्रचारकोकी जीवनियां तो महत्त्वकी है ही। इन पन्थोंका और इनकी शाखा-प्रशाखाओंका इतिहास भी हमे देखना होगा। और इससे भी अधिक महत्त्वको बात इन पन्थोके कवियोने अपनी कविताके द्वारा जीवनकी जो उपासना को है और हृदयको जो समृद्धि हासिल की है और करवायी है उसका भी गहरा और हार्दिक अध्ययन होना चाहिए। ____ इन पन्थोंके बारेमे और एक महत्त्वकी बात है । इनके साधुओंने, प्रचारकोंने और कवियोंने अपने-अपने पन्थका जीवन जीते जो नये-नये क्षेत्र ढूँढ़े और उनके द्वारा जीवनका जो विपुल साक्षात्कार किया, उसका महत्त्व मूल प्रेरणासे कम नहीं है । जिस तरह भाष्यकार और टीकाकार मूल ग्रन्थके रहस्यका उद्घाटन करते अपने नये-नये मौलिक विचार और अनुभव भी उसमे जोड़ देते है, उसी तरह हरेक पन्थका विवेचक, प्रचारक और कवि अपने-अपने पन्थकी जीवन दृष्टिमें अपनी ओरसे मौलिक वृद्धि भी करता है । यह हुआ हरेक व्यक्ति की जीवन-साधना-द्वारा होनेवाली सांस्कृतिक सेवा और समृद्धि । ___ इसके अलावा जब ऐसे पन्थोंका प्रचार भिन्न-भिन्न कोटिके और भिन्न-भिन्न योग्यताके नये-नये समाजमे होता है, तब मूल धार्मिक प्रेरणाको मानो नये-नये अवतार धारण करने पड़ते है। वैष्णवोंने अथवा शाक्तोंने जब आदिवासियोंमें धर्मप्रचार चलाया, तब उन लोगोके जीवन-स्तरका विचार करके और उनकी जीवन-दृष्टिके साथ समझौता करके इन पन्थोंकी समन्वय-दृष्टिको उन्हें स्वीकार करना पड़ा। हीनयान बौद्ध सम्प्रदायके अभिमानी लोग भले ही कहे कि हमारा
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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