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________________ ( २२८ ) अजीव सुख दुःखका वेदी नहीं अजीव अनादि है अजीव परमाणु पुट्गल संसार स्वरूप है । ३ तीसरा पुण्य तत्व । सो पुण्य अर्थात् सुकृत परोपकार दानादि रूप करना दुहेला और भोगना सुहेला जैसे बीमार को पथ्य करना दुहेला जो पथ्य करे तो सुखी होय ॥ ४ चौथा पाप तत्व । सो पाप हिंसा मिथ्यादि रूप करना सुहेला और भोगना दुहेला जैसे बीमार को कुपथ्य करना सुहेला जो कुपथ्थ करे तो दुःखी होय ॥ ५ पांचवां आश्रव तत्व । सो आत्मा रूपी तलाव और आश्रव रूपी नाले जिस के द्वारा पुण्य पाप रूपी पानी आवे तिस को आश्रव कहते हैं। ६ छठा सम्बर तत्व । सो आत्मा रूपी -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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