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________________ ( २१३ ) जाय एकांत उठा के रख देवे और जो कूड़ा कचरा निकले उसे फैला के देखे क्योंकि कीड़ी आदिक जन्तु रेत में दबी न रहजाय और जो कीड़ी आदिक निकले उसे एकांत करके कचरे को बुसरा देवे | फिर ईर्ष्या वही पड़िकम्मे फिर ४ चार प्रकार की समायिक करे सो द्रव्य थकी १ । खेत्र थकी २ | काल थकी ३ | भाव थकी ४ । तेद्रव्य थकी समायिक १ तथा २ इत्यादि || खेत्र थकी समायिक लोक प्रमाण || काल थकी समायिक २ घड़ी तथा ४ घड़ी इत्यादि || भावथकी समायिक ( सो ) शांति प्रमाण और सर्व भूत आत्म तुल्य शत्रु मित्र सम इत्यादि ० अथवा ४ चार प्रकार के समायक की शुद्धता सो १ द्रव्यथकी २ खेत्र थकी
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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