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________________ चौथा अध्याय ] बहिर्जगत् । ভ३ मगर वास्तव में यह बात नहीं है । जगत्का उपादानकारण क्या है ? — इस पूर्वोक्त प्रश्नका उद्देश्य है इस बहुत बड़े तत्त्वका निर्णय करना कि यह जगत् मूलमें केवल जड़से, या केवल चैतन्यसे, अथवा जड़ और चैतन्यसे स्पष्ट हुआ है, किन्तु वर्तमान प्रश्न कि " बहिर्जगत् की सब जड़ वस्तुएँ मूलमें भिन्न भिन्न या एक प्रकारके पदार्थसे गठित हैं ? " पहलेके प्रश्नकी अपेक्षा बहुत · संकीर्ण है, और इसका उद्देश्य है इस तत्त्वका निर्णय करना कि सब जड़ पदार्थ मूलमें अनेकविध या एकविध जड़से उत्पन्न हैं, और वह अनेकविध या एकविध जड़ किस प्रकारका है ? दुरूह दार्शनिक तत्त्वकी खोज छोड़ देने पर भी अपेक्षाकृत सुसाध्य वैज्ञानिक अनुसन्धानके द्वारा इस अन्तिम प्रश्नका उत्तर पानेकी ओर कुछ दूर अग्रसर हुआ जा सकता है । और परलोकके विषयकी चिन्तासे निवृत्त होने पर भी, ऐहिक व्यापारके लिए इस प्रश्नकी आलोचनाका प्रयोजन है । अनेक समय एक वस्तुसे दूसरी वस्तु उत्पन्न करना आवश्यक होता है, और सुलभ वस्तुको दुर्लभ वस्तुके रूपमें बदलना सभी समय वाञ्छनीय है । खाद और पानीसे वृक्ष - लता आदिका रस, और उससे अधिक मात्रामें उनके पत्ते - फूल-फल उत्पन्न करना अनेक समय आवश्यक होता है । जब पृथ्वी पर लोगोंकी संख्या थोड़ी थी, तब बिना यत्नके आप ही आप उत्पन्न फल-मूल और शिकार में मिला हुआ मांस ही यथेष्ट था । इस समय लोकसंख्या बढ़ जानेके कारण उद्भिज्ज वस्तुसे उत्पन्न ( अन्न, साग-सब्जी वगैरह ) आहारका परिमाण बढ़ाना आवश्यक हो गया है, और उसके लिए यह जानने की आवश्यकता है कि कैसी खाद देनेसे वह उद्देश्य सफल होगा । ताँबा, शीशा आदि कम कीमती धातुओंको सोना बना सकना सभी समय वाच्छनीय है, और इसके लिए अनेक देशों में अनेक समय बहुत कुछ चेष्टा हुई है । इन सब कामों में सफलता पानेके लिए पहले यह जान लेना चाहिए कि हम जिस वस्तुको दूसरी वस्तुके रूपमें बदलना चाहते हैं, वे दोनों वस्तुएँ मूलमें एक प्रकारकी हैं या भिन्न प्रकारकी हैं। अगर मूलमें वे भिन्न प्रकारकी हैं तो वाञ्छित परिवर्तन असाध्य है । अगर मूलमें दोनों वस्तु एक प्रकारकी हैं तो यह अनु • सन्धान करना चाहिए कि किस प्रक्रियाके द्वारा एक वस्तु दूसरी वस्तुके रूपमें बदली जा सकती है। रसायनशास्त्र और उद्भिद्विद्याकी आलोचना करके जाना गया है कि उद्भिद् अर्थात् वृक्ष-लता आदिसे उत्पन्न खाद्यमें यवक्षारजन 6
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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