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________________ चौथा अध्याय ] बहिर्जगत् । कुंभार घड़ा बनाता है, इस लिए वह घड़ेका निमित्त कारण है । इस स्थूल दृष्टान्तसे यह सहज ही समझमें आजाता है कि ब्रह्म इस जगत्का निमित्त कारण है। किन्तु कुंभार मिट्टीसे घड़ा बनाता है, और मिट्टी उस घड़ेका उपादान कारण है। ब्रह्म किस चीजसे जगत्की सृष्टि करता है ? जगत्का उपादान कारण क्या है ? इस प्रश्नका उत्तर देना अत्यन्त सहज नहीं है, और इसके उत्तरके सम्बन्धमें अनेक मत हैं। कोई कोई कहते हैं, जगत्के उपादान कारण जड़ और जीव हैं और वे दोनों अनादि हैं। कोई कहते हैं, जीव या आत्मा परमात्मा अर्थात् ब्रह्मसे उत्पन्न है, किन्तु जड़ और चैतन्यमें इतना वैषम्य है कि चैतन्यमय ब्रह्मसे जड़की उत्पत्ति हो ही नहीं सकती, इस लिए जड़ अनादि है और वही जगत्का उपादान कारण है। जड़वादी लोग कहते हैं चैतन्यसे जड़की सृष्टि असंभव है और उसका कोई प्रमाण भी नहीं है। बल्कि जड़से चैतन्यकी उत्पत्तिका प्रमाण जीवदेहमें पाया जाता है, इस लिए जड़ ही जगत्का एकमात्र मूल कारण है। और, वेदान्ती अद्वैतवादी लोग कहते हैं कि एक ब्रह्मसे ही चैतन्य और जड़ दोनोंकी उत्पत्ति है, और ब्रह्म ही जगत्का एकमात्र कारण है। (१) उपादान कारणके सम्बन्धमे अनेक मत । इन मतोंको श्रेणीबद्ध करनेसे देखा जाता है कि ये दो श्रेणियों में बंटे हुए हैं। प्रथम, द्वैतवाद अर्थात् जड़ और चैतन्य दोनोंके अलग अलग अतित्वका स्वीकार। द्वितीय, अद्वैतवाद अर्थात् एकमात्र पदार्थको जगत्का निमित्त कारण और उपादान कारण मानना। इस द्वितीय श्रेणीके मतमें भी और तीन विभाग हैं।-(क) जड़ाद्वैतवाद, अर्थात् एकमात्र जड़को ही जगत्का उपादान कारण मानना। (ख) जड़चैतन्याद्वैतवाद, अर्थात् जड़ और चैतन्य दोनोंके गुणोंसे युक्त एक पदार्थको जगत्का उपादान कारण स्वीकार करना । (ग) चैतन्याद्वैतवाद, अर्थात् चैतन्यको ही जगत्का एकमात्र उपादान कारण मानना। इनमेंसे कौन मत ठीक है, यह कहना कठिन है । तो भी जड़चैतन्याद्वैतवादके विरुद्ध प्रबल आपत्ति यह है कि जड़ और चैतन्यके गुणमें चाहे जितना वैषम्य क्यों न हो, जड़ पदार्थके प्रत्यक्ष ज्ञानलाभके समय, और हम लोग जब इच्छानुसार अंगसंचालन करते हैं उस समय, जाना जाता है कि जड़ चैतन्यके ऊपर और चैतन्य जड़के ऊपर कार्य कर रहा है, और जड़ और
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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