SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा अध्याय 1 अन्तर्जगत् । ५३ ठीक है या नहीं, किन्तु अन्तर्दृष्टिके द्वारा जहाँ तक जाना जाता है, उससे कहा जा सकता है कि उस सन्देहका कारण नहीं है । यह बात अवश्य सत्य है कि जब अन्तर्जगत्की ज्ञानविषयक या कर्मविषयक कोई क्रिया अत्यन्त प्रबल भावसे संपन्न होती रहती है, तब उसके आनुषंगिक सुखःदुखके प्रति मनोनिवेश बहुत थोड़ा होनेके कारण उसका संपूर्ण अनुभव नहीं होता, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि मनोनिवेश रहता ही नहीं, या एकदम उसका अनुभव ही नहीं होता । यद्यपि अन्तर्जगत्की क्रियामात्रके साथ साथ चाहे सुखका और चाहे दुःखका अवश्य ही अनुभव होगा, किन्तु केस क्रियाके साथ सुखका और किस क्रिया के साथ दुःखका अनुभव होगा, इसका कुछ ठीक नहीं । यह अभ्यास और ज्ञानकी विभिन्नता पर निर्भर है । अच्छी क्रियाके साथ सुखका अनुभव और बुरी क्रियाके साथ दुःखका अनुभव होना स्वभावसिद्ध है । किन्तु कु - अभ्यास और अज्ञानके फलसे अक्सर इस नियम में व्यतिक्रम होता देखा जाता है । अतएव अभ्यास और शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि अच्छे काममें ही सुखका अनुभव और बुरे काममें दुःखका अनुभव हो । सुख-दुःखके सम्बन्धमें और एक बात है, जिसका उल्लेख यहाँपर अप्रासंगिक या असंगत नहीं होगा । मनु भगवान्ने कहा है— सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् । एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयो ॥ ( अ० ४, श्लोक ० १६० ) और " जो परवश है वही दुःख है, जो आत्मवश है वही सुख है | सुख दुखःका यही संक्षिप्त लक्षण समझना चाहिए । ,, अन्यके वशवर्ती होना दुःख है और अपनी इच्छा के अनुसार चल सकना सुख है, यही इसका स्थूल अर्थ है । किन्तु इसके भीतर एक गहरा सूक्ष्म तत्त्व निहित है। जो कुछ परवश है वही दुःख है, इस जगहपर केवल राजनीति और समाज-नीति से सम्बन्ध रखनेवाली अधीनतासे होनेवाले ही दुःखोंकी बात नहीं कही जा रही है। इनके सिवा और भी तरह तरहकी पराधीनताएँ ( जैसे आधिदैविक और आधिभौतिक अधीनता) और उनसे होनेवाले दुःख हैं, और जब
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy