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________________ ३० ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग हो, वे शरीरतत्त्वकी और शरीरतत्त्वमूलक मनोविज्ञानकी पुस्तकें । पढ़ सकते हैं । इस जगह पर केवल ज्ञानेद्रियोंके संबंधमें संक्षेपसे दो-चार बातें कही जायेंगी । देखना, सुनना, सूंघना, चखना और छूना ये क्रमसे चक्षु, कर्ण, नासिका, जिह्वा और त्वक् इन पाँचों ज्ञानन्द्रियोंकी क्रिया या स्फुरण हैं। इनका आरम्भ देहमें और समाप्ति आत्मामें होती है। ये देहकी क्रियाएँ किस तरह आत्माकी क्रिया ( बाह्यवस्तुज्ञान ) के रूपमें परिणत होती हैं, यह अभी अज्ञात है । परन्तु वस्तु-ज्ञानके पहले हरएक इन्द्रियकी शारीरिक क्रिया कैसी होती है, इसका आविष्कार शरीरतत्त्वके ज्ञाता पण्डितोंके द्वारा बहुत कुछ हो चुका है। इसका पूरा ब्यौरा बहुत बड़ा है । यहाँ उसकी केवल कुछ मोटी मोटी बातें संक्षेपमें कही जायेंगी। चक्षुकी क्रिया कैसी है।-किसी वस्तुपर प्रकाश पड़ा, वह प्रकाश बिना बाधाके अगर आँखों तक पहुँचा तो आँखके भीतर जो सूक्ष्म नसोंका जाला है उसपर देखी हुई वस्तुकी प्रतिकृति अंकित होती है । साधारणतः आँखकी बनावट ऐसी अच्छी होती है कि वह प्रतिकृति देखी हुई चीजके आकारकी -ठीक तसबीर होती है। बुढ़ापेमें या किसी चक्षुरोगके कारण आँखदोष पैदाहोनेपर वह प्रतिकृति ठीक नहीं होती । देखी हुई वस्तुके आकारका ज्ञान विशुद्ध होना या न होना प्रतिकृतिके अविकल होनेकी कमीवेशीके ऊपर निर्भर है। वह प्रतिकृति सूक्ष्म स्नायुजालके ऊपर अंकित होती है और उसमें स्पन्दन पैदा करती है । वह स्पन्दन मास्तिष्कमें पहुँचाया जाता है, उसके बाद दर्शन-ज्ञान उत्पन्न होता है। कानका काम स्थूलरूपसे इस तरह होता है कि शब्दके द्वारा शब्दवाही वायुका जो स्पन्दन होता है, वह कानके छेदमें पहुँचकर वहाँके पटहचर्म पर आघात करता है। उस आघातसे उसमें स्पन्दन होता है। वह स्पन्दन कानके भीतरी भागमें स्थित सूक्ष्म केसर-पुंजको स्पन्दित करता है । वह स्पन्दन स्नायुद्वारा मस्तिष्कमें पहुँचता है, और उससे शब्दका ज्ञान पैदा होता है। नाक, जबान और त्वचाके सूक्ष्म सूक्ष्म स्नायुओंके साथ बाह्यवस्तुके गंधरेणु, स्वादरस और आकार, उत्ताप मिलित होकर उनमें स्पन्दन पैदा करते † Forster's physiolog देखो। dd's physiological psychology
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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