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________________ २२ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग कि देश और काल ज्ञाताके ज्ञानके बाहर नहीं रह सकते, क्योंकि अगर यह बात हो तो बहिर्जगत्के पदार्थके ज्ञानसे देश और कालका ज्ञान क्रमशः उत्पन्न होता। किन्तु ऐसा नहीं होता, पहलेहीसे बहिर्जगत्के किसी भी विषयको हम देश और कालसे असंयुक्त नहीं सोच सकते । अतएव देश-कालका ज्ञान बाहरसे प्राप्त नहीं है, भीतर ही प्रकट है । यह तर्कसंगत है सही, लेकिन इसके द्वारा यह बात नहीं प्रमाणित होती कि देश-काल ज्ञेय पदार्थ नहीं हैंकेवल ज्ञाताके ज्ञानके नियम हैं, और हमारे ऐसे ज्ञाताके न होने पर देश-काल भी न होता । बल्कि देश-कालसे असंयुक्त विषय। हम सोच नहीं सकते, तो इससे यह बात प्रमाणित होती है कि देश-काल स्वतःसिद्ध ज्ञेय पदार्थ हैं, और अन्यान्य ज्ञेय पदाथाकी अपेक्षा इनका अस्तित्व अधिकतर निश्चित है। जिस देश-कालसे अनवच्छिन्न विषयका होना सोचा भी नहीं जा सकता, और जिनका अभाव खयालमें भी नहीं लाया जा सकता, वे ही देश-काल ज्ञाताके बाहर नहीं हैं और ज्ञाताके द्वारा ज्ञेय पदार्थमें आरोपित होते हैं-यह बात अगर कही जाय तो ज्ञाताके अर्थात् आत्माके साक्ष्य वाक्यकी सचाईमें सन्देह होता है, और सन्देह करने पर उस सन्देहके ऊपर भी सन्देह होता है। कार्य-कारण सम्बन्धको लेकर भी उक्त प्रकारका मतभेद हो सकता है, किन्तु उस सम्बन्धको भी आत्माके साक्ष्य-वाक्योंमें ज्ञेय विषय कहना होगा -केवल ज्ञाताके ज्ञानका नियम नहीं। कारण और कार्यकी परंपरा ही लक्षित होती है, इसके सिवा वह प्रक्रिया हम नहीं जान सकते जिसके द्वारा जिस तरह कारण कार्यको उत्पन्न करता है। किन्तु कारण और कार्यके बीच केवल पारम्पर्य ही नहीं है, और तरहका भी सम्बन्ध है-ऐसा सोचे बिना नहीं रहा जा सकता। पूर्णज्ञानमें दशदिशा एक हैं, तीनों काल एक हैं और कार्य कारण भी एक ही हैं, ऐसी उपलब्धि हो सकती है। किन्तु वह एकत्व अपूर्ण ज्ञानका ज्ञेय नहीं है । तो भी इसीलिए अपूर्ण ज्ञानके ज्ञेयको एकदम भ्रांतिमूलक नहीं कहा जा सकता। देश, काल और कारण, ये तीनों ज्ञेय हमारे ज्ञानकी अपूर्णताका पूर्ण और अच्छा प्रमाण देते हैं। हम मनमें यह अनुमान नहीं कर सकते कि देश-काल और कारणपरंपराका अन्त है, साथ ही मनमें इनकी अनन्त पूर्णताकी धारणा
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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