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________________ छठा अध्याय ] धर्मनीतिसिद्ध कर्म | ३५९ 1 धर्मशिक्षा देनेकी अपेक्षा उनके लिए अधिकतर हितकर कार्य और कोई नहीं है । धर्मशिक्षा पानेसे ही लोग इहकाल और परकाल दोनोंके लिए प्रस्तुत हो सकते हैं । यथार्थ धर्मशिक्षा केवल परकालहीके लिए नहीं होती । कारण, वह शिक्षा सबके पहले कह देती है कि इसी लोकके भीतर होकर परलोक जानेकी राह है, और इस लोकके कार्यको सुचारुरूपसे सम्पन्न किये बिना परलोक में सद्गति नहीं होती । इसी कारण धर्मशिक्षाको सब शिक्षाओं की जड़ कहा जाता है । यथार्थ धर्मशिक्षा पानेसे लोग आप ही व्यग्रताके साथ इस लोकके कर्तव्यपालनके उपयोगी शिक्षा पानेके लिए यत्नशील होते हैं, और साधुताके साथ संसारयात्राका निर्वाह करनेके लिए इरादा करते हैं । 1 धर्मशिक्षा जैसे लोगोंके इहकाल और परकाल दोनोंके लिए मंगलकारिणी है, और लोगों की धार्मिक शिक्षाका प्रबन्ध करना जैसे मनुष्यका प्रधान कर्तव्य है, वैसे ही यथार्थ धर्मशिक्षा देना कठिन काम भी है । एक तो धर्मके सम्बन्धमें इतना मतभेद है कि कौन किसे कैसी शिक्षा देगा यह ठीक करना दुरूह है । दूसरे, केवल धर्मनीतिका ज्ञान हो जानेसे ही धर्मकी शिक्षा पूरी नहीं होती, वह ज्ञान जिससे कार्य में परिणत हो, अर्थात् जिससे धर्मनीतिसिद्ध काम करनेका अभ्यास हो, इसका प्रबन्ध करना भी धर्मशिक्षाका अंग है, और वैसा प्रबन्ध करना कोई सहज काम नहीं है । सबसे पहले माता-पिताके निकट धर्मकी शिक्षा मिलनी चाहिए। वह शिक्षा, साधारण धर्म और साम्प्रदायिक धर्म, दोनोंके सम्बन्धमें हो सकती है । और माता-पिताकी दी हुई धर्मशिक्षामें, धर्मनीतिके ज्ञानका लाभ और धर्मकार्य करनेका अभ्यास कराना, इन दोनों विषयोंपर तुल्य दृष्टि रक्खी जा सकती है। पिता और माताके निकट पुत्र-कन्याकी धर्मशिक्षा के सुभीते के लिए हरएक परिवार में प्रतिदिन कमसे कम हर हफ्ते में एकदिन, धर्मकथाकी आलोचनाके लिए - धार्मिक बातोंकी चर्चा के लिए कुछ समय बंधा रहना चाहिए। और, प्रतिदिन ही मौकेके माफिक परिवार के लड़की-लड़कों को किसी न किसी धर्मकार्य के अनुष्ठानमें किसी तरह लगाना कर्तव्य है । सरकारी स्कूलों में रहे या न रहे, प्रजाके द्वारा स्थापित हरएक पाठशाला या स्कूल धर्मशिक्षाकी व्यवस्था रहनी चाहिए । लेकिन वह शिक्षा साधारण aat हो । साम्प्रदायिक धर्मोकी शिक्षा होना संभवपर नहीं है । कारण,
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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