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________________ ३४४ ज्ञान और कर्म । [ द्वितीय भाग कुछ सोचकर देखनेसे जान पड़ता है कि इतने थोड़े में राजाके कर्तव्यका पालन पूरा नहीं हो जाता, प्रजाको और भी कुछ अधिक शिक्षा देनेका प्रबन्ध करना राजाका कर्तव्य है । हाँ, वह शिक्षा कितनी उच्च होनी चाहिए, इसका निर्णय देशकी और सभ्य जगत्की अवस्थाके ऊपर निर्भर है । उच्चशिक्षित समाजके ज्ञानका परिसर ( दायरा ) जैसे विस्तृत हो रहा है, वैसेही उसीके अनुसार सर्वसाधारणकी शिक्षाकी सीमा भी विस्तृत होनी चाहिए । शिक्षाके सम्बन्धमें राजाके तीन मुख्य कर्तव्य हैं । एक तो देशकी अवस्थापर दृष्टि रखकर प्रयोजनीय साधारण शिक्षाके लिए छात्रोंकी अवस्थाकी निम्न ( कमसे कम ) और उच्च ( अधिक से अधिक ) सीमा निश्चित करना । दूसरे, उस अवस्थाके सब बालकोंकी शिक्षा के लिए यथायोग्य स्थानों में प्रयोजनके अनुसार विद्यालय ( स्कूल ) स्थापित करना । तीसरे, इस तरहका नियम करना कि निर्द्धारित अवस्थाके सभी बालक किसी न किसी विद्यालय में भर्ती होनेके लिए बाध्य हों । इनके सिवा राजाका और भी एक कर्तव्य है । वह यह कि उच्च शिक्षाके लिए जगह जगह दो-एक आदर्श विद्यालय स्थापित करना । इसके सिवा प्रजावर्गकी नीतिशिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था करना भी राजाका आवश्यक कर्तव्य है । ऐसा होनेपर, शान्तिभंगका मूल कारण जो दुर्नीति है उसे रोकना, अर्थात् प्रजावर्गको सुनीतिकी शिक्षा देना, राजाके कर्तव्य में अवयही गिना जायगा । कोई कोई व्यंग्य करके कहते हैं कि कानूनके द्वारा लोग नीतिशाली नहीं बनाये जा सकते । किन्तु इससे यह नहीं प्रमाणित होता कि नीतिकी शिक्षा निष्फल है, और इसी लिए निष्प्रयोजन है । प्रजाकी धर्मशिक्षा और कर्तव्यपालनके बारेमें राजाका कर्तव्य 1 1 इस सम्बन्ध में बहुत कुछ मतभेद है कि प्रजाकी धर्मशिक्षाका प्रबन्ध करना कहाँतक राजाका कर्तव्य है । जहाँ राजा और प्रजाका धर्म अलग अलग है, वहाँ प्रजाकी धर्मशिक्षाके बारेमें राजाका निर्लिप्त रहनाही उचित है, और जिसमें सब सम्प्रदाय निर्विघ्नरूपसे अपने अपने धर्मका पालन कर सकें, वैसी व्यवस्था करना ही कर्तव्य है । समय समय पर इस विषय में कर्तव्य - संकट उपस्थित हो सकता है । जहाँ एक सम्प्रदायका धर्म पशुवधकी आज्ञा देता है, और अन्य सम्प्रदायका धर्म उसका निषेध करता है, वहाँ दोनोंही अगर अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्मका पालन करना चाहें, तो विरोधका होना
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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