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________________ संचवः अध्याय राजनीतिसिद्ध कर्म । ३२३ इस सम्बन्धकी सृष्टि हुई है (: इसके विरुद्ध दुसर? मत यह है कि लोगोंने गुरुन्न होकर राजा-मजाके सम्बन्धकी रष्टि नहीं की। वह हरक जगह क्रमशः उत्पन्न होकर वृट्टियो प्राप्त हुआ है ; अवस्थाभेदके अनुसार उसने अनेक रूप धारण किये हैं। इन दोनों मतोंमें कुछ कुछ सत्यका अंश है, किन्तु संपूर्ण रूपसे सत्य कोई नहीं है। पहले मतमें इतनासा सत्यका अंश है कि जिनमें जिस भावसे राजाप्रजाका सम्बन्ध है उनकी या उनमसे अधिकांशकी, उस सम्बन्धके उस भावसे रहनेके बारेमें प्रकाश्य भावसे भले ही न हो किन्नु प्रकारान्तरसे सम्मति है । कमसे कम उसमें कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि अगर संमति न होती, आपत्ति होती, तो वह सम्बन्ध कभी नहीं रह सकता। किन्तु इसी लिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह सम्बन्ध उनकी स्पष्ट संमतिके अनुसार उत्पन्न हुआ है। जैसे लोगोंकी प्रकाश्य संमतिसे भाषाकी प्रथम सृष्टि होना असंभव है, (क्योंकि ऐसा नहीं माननेसे यह प्रश्न उठता है कि वह संमति किम भाषामें दी गई थी?) वैसे ही लोगोंकी प्रकाश्य संमतिसे प्रथम राजा-प्रजासम्बन्धकी सृष्टि होना असंभव मान लेनेसे यह प्रश्न उठता है कि समाजमें राजा-प्रजाके संबन्धकी प्रथम सृष्टि होनेके पहले किसके नेतृत्वमें एकत्र होकर लोगोंने उस सम्बन्धकी सृष्टि की? दूसरा मत यहीं तक सत्य है कि राजा-प्रजाका सम्बन्ध किसी एकदिन शुभ या अशुभ घड़ीमें लोगोंकी प्रकाश्य संमतिसे नहीं उत्पन्न हुआ है। मनुष्यकी स्वाभाविक प्रकृतिके अनुसार क्रमशः मानवसमाजके बीच इस सम्बन्धकी सृष्टि हुई है। किन्तु इसी लिए यह नहीं कहा जा सकता कि जिन लोगोंके बीच इस सम्बन्धका उद्भव हुआ है, उनका मतामत उस उद्भवकी कल्पनाके सम्बन्धमें एकदम गिनने योग्य ही नहीं है। इस सम्बन्धकी सृष्टिके अन्याय कारणों में एक कारण उनकी प्रकाश्य रूपसे या प्रकारान्तरसे दी हुई संमति भी है, जो लोग इस सम्बन्धमे बंधे हुए हैं। राजा-प्रजा-सम्बन्धकी उत्पत्ति भिन्न भिन्न देशोंमें, भिन्न भिन्न समयोंमें, किस तरह हुई है, यह उन उन देशोंके उस उस समयके इतिहासका विषय है। किन्तु इस सम्बन्धकी प्रथम सृष्टि भाषा आदि अन्यान्य अनेक विषयोंकी (१) Hobbe's Leariathan, chap. 13 इस सम्बन्धमें देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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