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________________ ३१४ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भाग तीसरे प्रश्नके सम्बन्धमें वक्तव्य यह है कि रोगकी यथार्थ अवस्था क्या और कैसी है, और आरोग्य लाभकी संभावना कहाँ तक है, यह रोगीसे बतादेनेमें उससे रोगीकी दुश्चिन्ता और साथही-साथ उसका रोग भी बढ़ सकता है, इस लिए रोगीको ये बातें बताना अनुचित है। लेकिन रोगीके आत्मीयस्वजनोंको ये बातें बतादेना चिकित्सकका आवश्यक कर्तव्य है। और, जहाँ एकसे अधिक चिकित्सक एक साथ सलाह करके चिकित्सा करते हैं, वहाँ उनका कर्तव्य है कि सलाहके समय उनका जो मतामत प्रकट हो वह रोगीके आत्मीय-स्वजनोंको भी बतलादें। कारण, ये सब बातें जानना उनके लिए आवश्यक है। इन बातोंको बिना जाने वे उपयुक्त रूपसे यह ठीक नहीं कर सकते कि चिकित्साके सम्बन्धमें उनका अपना कर्तव्य क्या है। वे चिकित्साशास्त्रसे एकदम अनभिज्ञ हो सकते हैं, और यह बात चिकित्सक लोग उनकी अपेक्षा बहुत अच्छी तरह जान सकते हैं कि किस तरहकी चिकित्साका क्या फल होगा। किन्तु संसारकी यह एक विचित्र पहेली है कि किस चिकित्साको दिखानेसे-सुफल प्राप्त होगा, यह ठीक करनेका भार उन्हीं अनभिज्ञ लोगोंके सिर पर है। असाध्य या चिकित्सासे बहिर्भूत रोगमें भी चिकित्सकको दिखाना, रोगीके रोगकी शान्तिके लिए हो या न हो, लेकिन उसके आत्मीय स्वजनोंके क्षोभ की शान्ति और सन्तोषके लिए अवश्य आवश्यक है। अतएव जिससे उनका वह क्षोभ मिट जाय उस उपायके अवलम्बनमें उनकी सहायता करना चिकित्सकका धर्म है। चौथे प्रश्नका संक्षेपमें सही उत्तर यह है कि रोगीके बुलावेका खयाल करना, अर्थात् उसका बुलावा आने पर वहाँ जानेके लिए यथासाध्य चेष्टा करना, चिकित्सकका कर्तव्य है। इस देशमें एक साधारण कहावत है कि जो साँपका मन्त्र जानता है. उसे अगर कोई साँपके काटे रोगीकी झाड़-फूंकके लिए बुलाने आवे, या कमसे कम उसके कानोंतक किसी तरह वह खबर पहुँच जाय, तो चाहे वक्त हो चाहे बेवक्त हो, उसे उसी दम वहाँ जाना चाहिए, अगर नहीं जायगा तो उसका घोर अकल्याण होगा यह बात बहुत ही उत्तम है और इसका भाव यह है कि जो आदमी किसी कठिन पीड़ा या रोगकी चिकित्सा जानता है उसे अगर चिकित्सा करनेके लिए बुलावा आवे तो वहाँ जाना उसका कर्तव्य है।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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