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________________ चौथा अध्याय ] सामाजिक नीतिसिद्ध कर्म । ३११ चौथे प्रश्नके उत्तरमें यहीं तक कहा जा सकता है कि जहाँ मुकदमेंमें उपस्थित होनेके लिए वकीलने यथासाध्य चेष्टा की है, और मुकदमा शुरू होनेके समय वह, जिस अदालतका वकील है उसी अदालतमें, अन्य विचारकके सामने, उपस्थित था, वहाँ न्यायके अनुसार वह लिये हुए फीसके रुपये फेर देनेके लिए वाध्य नहीं है। कारण, ऐसी जगहके लिए, तीसरे प्रश्नकी आलोचनामें कहा जा चुका है-मुकदमेंके चलानेवाले लोग इसी विश्वाससे वकील नियुक्त करते हैं कि वह ( वकील ) मुकदमें में उपस्थित होनेके लिए यथासाध्य यत्न करेगा, और वह जिस अदालतका वकील है उस अदालतमें उपस्थित रह कर भी अगर अन्य विचारकके इजलासमें उपस्थित रहनेके कारण. किसी मुकदमेंमें उपस्थित न हो सके, तो उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं हो सकता। किन्तु, यदि वह अन्य किसी अदालतमें चला जाय, और इस कारण उसके मुकदमेंमें उपस्थित न हो सके, तो मवक्किलकी इच्छाके अनुसार उसकी जो रकम ली है वह फेर देना उसका कर्तव्य है। वकील बैरिस्टरोंका पेशा उन्हें एक बहुत अच्छा काम करनेके लिए यथेष्ट सुयोग देता है, और उस सुयोगके अनुसार वह अच्छा काम करना उनका कर्तव्य गिना जासकता है । वह अच्छा काम है, मुकदमा शुरू होनेके पहले और पीछे भी दोनों पक्षोंको आपसमें समझौता कर लेनेका उपदेश देना । सभी जगह वह उपदेश उतना प्रयोजनीय नहीं भी होसकता है, और अनेक जगह उसका निष्पल होना भी संभवपर है। किन्तु बहुत जगह ऐसी भी होती है, जहाँ वह उपदेश अत्यन्त वांछनीय और हितकर होता है। जैसे जहाँ वादी (मुद्दई ) और प्रतिवादी (मुद्दालेह) दोनों में अति निकटसम्बन्ध है, अथवा मुकदमेका फलाफल अत्यन्त अनिश्चित है, वहीं मुकदमा चलनेसे केवल विरोध बढ़ेगा और दोनों पक्षोंका बहुत सा रुपया स्वाहा हो जायगा। इसके अलावा हार जाने पर हारने वालेको मानसिक व्यथा जो पहुँ चेगी सो घातेमें ! ऐसी जगह दोनों पक्षोंको कुछ कुछ हानि स्वीकार करके भी झगड़ा मिटालेना चाहिए। चिकित्सक संप्रदायकी कर्तव्यता। चिकित्सकका काम जैसा गौरवयुक्त है वैसा ही बड़ी जिम्मेदारीका है उसके हाथमें प्रायः प्राण तक सौंप दिये जाते हैं। फिर चिकित्सकसे अगर
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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