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________________ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भाग तो वह नहीं निर्वाचित होता । किन्तु एक साथ उसकी अपेक्षा कम योग्य दो प्रतियोगियोंके रहनेसे उसका निर्वाचन हो रहा है। यह बात संगत नहीं जान पड़ती। इसी कारण अनेक जगह निम्नलिखित दूसरी प्रणाली काममें लाई जाती है। इस जगह यह कह देना आवश्यक है कि अगर कोई प्रार्थी निर्वाचकोंमेंसे आधेसे अधिक अशंका अनुकूल मत पावे, तो उसके सम्बन्धमें ऊपर लिखी आपत्ति लागू न होगी। दूसरी प्रणाली। प्रथम निर्वाचनमें जिसके अनुकूल सबकी अपेक्षा अल्पसंख्यक मत प्रकट हुए, उसे निकालकर बाकी प्रार्थियोंके बारेमें मत लिये जायेंगे । उसमें अगर कोई प्रार्थी आधी संख्यासे अधिक निर्वाचकोंका अनुकूल मत पा जाय, तो वह निर्वाचित होगा । अगर यह बात न हुई, तो फिर जो सबकी अपेक्षा थोड़े अनुकूल मत पावेगा, उसे निकालकर अन्य प्रार्थियोंके सम्बन्धमें पहलेकी तरह मत लिया जायगा । इसी तरह क्रमशः प्रार्थियोंको निकालते निकालते जब देखा जायगा कि किसी प्रार्थीके अनुकूल आधेसे अधिक संख्यामें अनुकूल मत प्रकट हुआ है तब वही निर्वाचित होगा, यह निश्चित किया जायगा। ऊपरके दृष्टान्तमें, दुबाराके मत-प्रकाशनका फल इस तरह हो सकता है क के अनुकूल ८ आदमी ख के अनुकूल ११ आदमी या क के अनुकूल ९ आदमी ग के अनुकूल १० आदमी और पहली अवस्थामें ख, दूसरी अवस्थामें ग निर्वाचित होगा। इस प्रणालीके विरुद्ध केवल यही कहा जा सकता है कि जिस जगह निर्वाचकोंकी संख्या अधिक है और वे एकत्र जमा होकर मत नहीं प्रकट करते, वहाँ दुबारा तिबारा चौबारा मत प्रकट करना सहज नहीं है-कष्टसाध्य है, और उसमें खर्च भी अधिक पड़ेगा। इसी कारण इस प्रणालीके न्यायसंगत होनेपर भी, इसे सब जगह काममें लाना कठिन है। इस असुविधाकी आपत्ति प्रसिद्ध गणितशास्त्रज्ञ लाप्लासेकी अनुमोदित प्रणालीसे बचाई जा सकती है। उसे तृतीय प्रणाली कहेंगे।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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