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________________ rrrrrrrror ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग अद्वैतवाद ही ग्रहण करनेके योग्य है। अगर यह मानना है कि सारा जगत् एक ही आदि कारणसे उत्पन्न है तो यह भी अवश्य कहना होगा कि वह मूलकारण चैतन्यमय है। क्योंकि मूलकारणमें अगर चैतन्य नहीं रहेगा तो फिर जगत्में चैतन्य कहाँसे आवेगा? युक्ति यही बात कहती है। विज्ञान भी यह बात प्रमाणित करनेकी चेष्टा कर रहा है कि हम जिसे जड़ पदार्थ समझते हैं वह शक्तिकी केन्द्रसमष्टि है । इसके सिवा जड़के अस्तित्वका एक मात्र साक्षी चैतन्य, अर्थात् ज्ञाताका ज्ञान है । हमारे इस कथनका यह तात्पर्य नहीं है कि ज्ञाताके ज्ञानके बाहर जड़का अस्तित्व ही नहीं है। इस कथनका उद्देश्य यह है कि जड़ और चैतन्यका सम्बन्ध जहाँ तक समझा जाता है उससे कहा जा सकता है कि जड़से चैतन्यकी उत्पत्तिके सिद्धान्तकी अपेक्षा चैतन्यसे जड़की सृष्टिका अनुमान अधिकतर संगत है। यह जो कहा गया कि देहकी बढ़ती और घटतीके साथ साथ चैतन्य भी बढ़ता-घटता है, तो यह बात भी कुछ दूरतक सत्य होनेके सिवा संपूर्ण सत्य नहीं है । देहके पूर्ण विकासके साथ बुद्धिका भी पूर्ण विकास सर्वत्र नहीं देखा जाता। उधर देहकी अपूर्णता या हासके होते भी अनेक जगह किसी भी अंशमें बुद्धिका अभाव नहीं देख पड़ता, और किसी जगह अहं-ज्ञानका रत्तीभर भी अभाव नहीं घटित होता । हाँ, देहकी अपूर्णता या -हासके साथ साथ बाह्मजगदसे सम्बन्ध रखनेवाले ज्ञानका अभाव सर्वत्र देखा जाता है। लेकिन उसका कारण यह है कि देह ही उस ज्ञानकी प्राप्तिका उपाय है। भिन्न भिन्न जातिके जीवोंके चैतन्यकी कमीबेशी जो उनके मस्तिष्क और इन्द्रियोंकी पूर्णताकी कमीबेशीके साथ साथ चलती है, उसका भी कारण यही है कि उनके चैतन्यका परिचय केवल उनके बाह्यजगत्के कार्योंसे पाया जाता है, और वे सब कार्य बहिर्जगत्के विषयोंसे सम्बन्ध रखनेवाली उनकी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियोंके द्वारा अवश्य ही सीमाबद्ध हैं। ___ यह जो कहा गया है कि देहको छोड़कर आत्माके अस्तित्वका प्रमाण नहीं है, सो बहुत कुछ सत्य है, लेकिन इसके विरुद्ध यह कहा जा सकता है कि निद्राकी हालतमें देहके निश्चेष्ट रहने पर भी आत्माका विलोप नहीं होता। इस जगह पर और एक बात याद रखना आवश्यक है। देह और देहकी सारी शक्ति सीमाबद्ध और सान्त है, किन्तु आत्मा सीमाबद्ध होना नहीं
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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