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________________ २९४ ज्ञान और कर्म । [ द्वितीय भाग नाई वगैरहका जाना इसी लिए रोक दिया जाता है कि उससे अपराधीको कष्ट मिले | इसके सिवा धर्मकी दृष्टिसे उसका कुछ प्रयोजन नहीं है, और वर्तमान कालमें इस दण्डकी प्रथा उठ भी गई है । अपराधी अगर अपने धर्मसे पतित हो जाय, तो उसके घर पुरोहितको न जाने देना शास्त्रसंगत हो सकता है, लेकिन इस समय वह दण्ड भी उतना कष्टदायक नहीं रह गया है । कारण, इस समय पुरोहितोंका प्रयोजन कम हो गया है । फिर प्रयोजन होने पर ऐसे वैसे पुरोहितोंको सभी पासकते हैं, और वैसे पुरोहितोंको पाकर ही लोग सन्तुष्ट हो जाते हैं। पंक्तिभोजन बंद कर देना ही इस समय दलबंदीका एकमात्र अस्त्र और समाजका शासन रह गया है । उस शासनसे छुटकारेकी राह केवल यही है कि अपराधका अगर प्रायश्चित्त हो सकता हो तो वह कर डालो । सामाजिक अपराध जितना ही प्रायश्चित्तके द्वारा मिट सकता हो, और वह प्रायश्चित्त जहाँ तक युक्तिसंगत हो, उतना ही कल्याण है । दण्ड चाहे सामाजिक हो और चाहे राजनीतिक हो, वह आगे होनेवाले अपराधको रोकने के लिए ही विहित है; उसका उद्देश्य अपराधीको कष्ट देना कभी न होना चाहिए । अतीत अपराधका जिसमें संशोधन हो, वही चेष्टा करना कर्तव्य है । समाजकी पवित्रता बनाये रखनेके लिए दोषसे घृणा करना आवश्यक है, किन्तु साथ ही लोगोंकी सत्प्रवृत्ति बढ़ाने के लिए दोषी पर दया करना भी उचित है, और जिससे दोषीके दोषका संशोधन हो वही राह पकड़ना कर्तव्य है । प्रतिवासीसमाजके संबंध में और एक बात सभीको स्मरण रखनी चाहिए । वह यह कि समाजके अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति चाहे जितना बड़ा धनी मानी विद्वान् या कुलीन हो, समाज उसकी अपेक्षा बड़ा और संमाननीय है । इस बातसे किसी भी आत्माभिमानको धक्का नहीं लग सकता । कारण, समाजा हरएक आदमी जानता है कि उसको और अन्य दस आदमियोंको भी लेकर ही समाज है । अतएव समाज अवश्य ही उससे कुछ बड़ा है । ३ एक धर्मावलम्बी समाज और उसकी नीति । एक धर्मावलम्बी सभी आदमी कल्पना में एकसमाजभुक्त हैं । तो भी वैसे व्यक्तियोंकी संख्या अत्यन्त अधिक और उनके निवासस्थान अतिदूरवर्ती होने पर उन्हें एक समाजके अन्तर्गत कहने में कोई फल नहीं है । कारण
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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