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________________ ज्ञान और कर्म । [प्रथम भाग लिए अन्य प्रमाणकी अपेक्षा नहीं है। मैं कौन हूँ, मेरा स्वरूप क्या है, इस विषयका ज्ञान स्वतःसिद्ध है, किसी प्रमाणके द्वारा उसकी उपलब्धि नहीं होती। __ यह सच है कि आत्मज्ञान स्वतःसिद्ध है । इसे सभी स्वीकार करते हैं । वेदान्तदर्शनके भाष्यमें भगवान् शंकराचार्य ने कहा है कि " आत्मा ही प्रमाण आदि व्यवहारोंका आश्रय है; अतएव आत्मा प्रमाण आदि व्यवहारोंके पहले ही सिद्ध है।" और पाश्चात्य पण्डित डेकार्टने भी कहा है कि "मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ ।।" अर्थात् अपना प्रमाण मैं खुद हूँ। किन्तु ये सब बातें सत्य होने पर भी यह प्रश्न अनावश्यक नहीं है कि मैं कौन हूँ, और मेरा स्वरूप क्या है ? कारण, यद्यपि आत्मज्ञान स्वतःसिद्ध है और उक्त प्रश्नका उत्तर किसी बाहरी प्रमाणकी अपेक्षा नहीं रखता-अन्तर्दृष्टिहीके द्वारा प्राप्य है तो भी वह अन्तर्दृष्टि जब तक ज्ञानचर्चाका अभ्यास नहीं करती, तब तक मैं कौन हूँ और मेरा स्वरूप क्या है, इसके विशेष तत्त्वकी उपलब्धि नहीं होनी, और इसी कारण आत्मस्वरूपके निर्णयमें लोगोंके बीच इतना मतभेद देख पड़ता है। कोई कहते हैं, मेरा सचेतन देह ही मैं और मेरा. स्वरूप है। कोई कहते हैं, मेरा आत्मा ही मैं हूँ, और वह चैतन्यस्वरूप है। यह देह मेरा अर्थात् आत्माका बन्धन और पिंजड़ासा है। फिर जो लोग आत्माको ही मैं अर्थात् ज्ञाता कहते हैं, वे भी परस्पर एकमत नहीं हैं। उनमें भी एक संप्रदायके लोग कहते हैं कि सब आत्मा परस्पर जुदे 'जुदे हैं, और अन्य एक संप्रदायके लोग कहते हैं कि इस भेदज्ञान या अहं-ज्ञानकी जड़ अध्यास, अविद्या या भ्रम है; वास्तवमें आत्मा और ब्रह्म एक ही है। आत्महारने विषय इस तरहके मतभेद ही इस प्रश्नकी आवश्यकताका प्रतिपादन करते हैं कि मैं कौन हूँ, और मेरा स्वरूप क्या है ? ___ अनेक लोग समझ सकते हैं कि आत्मज्ञानके सम्बन्धमें जब इतना मतभेद है तब मैं कौन हूँ और मेरा रूप क्या है, यह प्रश्न अज्ञेय है, और इसे जाननेके लिए समय नष्ट न करके सहजमें जाननेयोग्य जो विषय हैं उन्हें जानने में समय लगानेसे उपकार हो सकता है । लेकिन यह बात न तो संगत है और ___ * “ आत्मा तु प्रमाणादिव्यवहाराश्रयत्वात् प्रागेव प्रमाणादिव्यवहारात् सिद्धयति । " अ० २, पाद० ३, सूत्र ७ का भाष्य । t"Cater:0 Sum."
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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