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________________ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भाग स्त्रीकी शिक्षा केवल विद्याकी शिक्षा या केवल शिल्पकी शिक्षा नहीं है। ये शिक्षाएँ उसे दे सको तो अच्छा ही है, लेकिन स्त्रीके लिए अति आवश्यक शिक्षा कर्मकी और धर्मकी शिक्षा है। वह शिक्षा देने के लिए स्वामीको खुद कर्मिष्ठ और धर्मिष्ठ बनना होगा, और मौखिक उपदेश तथा आचरणसे वह शिक्षा देनी होगी। आचरणके बिना केवल जबानी उपदेश संपूर्ण रूपसे कार्य करनेवाले नहीं होंगे। स्त्रीको सुखी रखना, पर विलासप्रिय न बनने देना । स्त्रीको भरसक सुख और स्वच्छन्दतासे रखना स्वामीका अवश्य-कर्तव्य है। किन्तु क्षमता रहने पर भी, स्त्रीको विलासप्रिय न बनाना उसीके तुल्य कर्तव्य है । स्वामी अगर सचमुच स्त्रीका शुभचिन्तक है तो उसे चाहिए कि स्त्रीको कभी विलासप्रिय न होने दे। संसार कठोर कर्मक्षेत्र है। यहाँ विलासप्रिय बननेसे कर्तव्यपालनमें विघ्न पड़ता है और जिस सुखके लिए विलास-लालसा की जाती है वह भी नहीं मिलता। यह बात पहले बहुत ही कड़वी जान पड़ सकती है। कोई कोई सजन अपने मनमें सोच सकते हैं कि जब स्त्री सहधर्मिणी भी है और आनन्ददायिनी भी है, तब वह अगर बीच बीचमें कुछ-कुछ आमोद-प्रमोदके द्वारा स्वामीको आनन्दित न करके निरन्तर कर्तव्य-पालनके लिए कठोर भाव या उदासीनता धारण किये रहे, तो फिर संसार एक असह्य स्थान हो जायगा। किन्तु इस तरहकी आशंकाका कोई कारण नहीं है । समय समय पर आल्हाद-आमोद करनेके लिए स्त्रीके लिए क्यों, स्वामीके लिए भी कोई निषेध नहीं है। मगर आल्हाद-आमोद करना और विलासप्रिय होना एक ही बात नहीं है। आनन्दलाभके लिए ही लोग विलासकी खोज करते हैं, किन्तु उससे यथार्थ आनन्द नहीं होता । कारण, एक तो विलासकी चीजें लानेमें या जमा करनेमें कष्ट उठाना पड़ता है, खर्च करना पड़ता है। दूसरे, उन चीजोंको जमा करलेने पर भी, उनसे तृप्ति नहीं होती। दिन-दिन नई-नई भोगवासना उत्पन्न होती हैं, और उन भोगवासनाओंकी तृप्ति होना क्रमशः , कठिन हो उटता है, और उनकी तृप्ति न होनेसे ही क्लेश होता है। तीसरे, विलासकी ओर मन जानेसे क्रमशः श्रमसाध्य कर्तव्यकर्म करने में अनिच्छा हो जाती है। चौथे, मनकी दृढ़ताका ह्रास होता है, और किसी अवश्य हो
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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