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________________ २३८ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भाग ___ आडम्बरके सम्बन्धमें और एक बात है। जो लोग बहुत धनाढ्य हैं, जिनके बहुतसा धन खर्च करनेकी क्षमता है, और जिनके अनुकरणको असाध्य जानकर लोग उसमें प्रवृत्त नहीं होते, वे यथायोग्य आडंबरके साथ कार्य करें; उससे किसीकी भी क्षति नहीं है। किन्तु जिनकी वैसी हालत नहीं है, जो बिना क्लेशके थोड़ासा ही धन खर्च कर सकते हैं, उन्हें आधिक व्यय करके आडम्बरके साथ कार्य करना कभी उचित नहीं है। कारण, पहले तो उनका उस तरह खर्च करना खुद उनके लिए क्षतिकर है, क्योंकि उनके पास इतना धन नहीं है कि वे रुपयेको पानीकी तरह बहा सकें। दूसरे, उनका वैसा काम करना औरोंके लिए अनिष्टकर है। कारण, उनका खर्च देखकर उनके समान श्रेणीके अथच उनकी अपेक्षा कम हैसियतके लोग उतना ही खर्च करना चाहते हैं, और कष्ट उटाकर भी उनके बराबर खर्च करते हैं। अगर उतना खर्च नहीं कर सकते, तो मन-ही-मन और भी कष्ट पाते हैं। विवाहका उत्सव अतिपवित्र धर्मकार्य है। उसमें नाचनेवालियों या वेश्याओंके नृत्य-गीत या नट-नटी आदिके अभिनय इत्यादि किसी अपवित्र आमोद-प्रमोदका होना सर्वथा अनुचित और हानिकर भी है। विवाह-सम्बन्धका स्थितिकाल और कर्तव्यता। विवाहसम्बन्धका स्थितिकाल पति और पत्नीकी जिन्दगी भर है। उस समयमें स्वामीका कर्तव्य स्त्रीका आदर और सम्मान करना, और उपदेश तथा अपने दृष्टान्तके द्वारा सुशिक्षा देना है। स्त्री जो है वह जीवनके सुखदुःखकी चिरसंगिनी है, अति आदरकी वस्तु है । वह केवल विलासकी चीज नहीं है, सम्मान पानेकी अधिकारिणी है। मनु भगवान् कहते हैं: यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥ ( मनु अ० ३ । श्लो० ५६) अर्थात् जहाँ नारियोंका आदर होता है वहाँ देवता सन्तुष्ट होकर निवास करते हैं । जहाँ स्त्रियोंका अनादर होता है वहाँ सब कर्म निष्फल होते हैं।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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