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________________ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भाग कारण प्रकट हुई शरीरकी उज्ज्वल कान्ति और लावण्य, और मानसिक पवित्रता या प्रफुल्लताले उत्पन्न मुखकी निर्मल कान्ति ही यथार्थ रूप और सौन्दर्य है। उस रूप-सौन्दर्यकी खोज अवश्य ही करनी होगी। उसके अलावा रूप मिले तो अच्छा ही है, और अगर न मिले तो उससे कुछ विशेष हानि नहीं। यह भी याद रखना चाहिए कि रूपका आदर तो ब्याहके बाद कुछ दिनतक ही रहता है, गुणहीका आदर सदा होता है। रूपके सम्बन्धमें और एक बात है। अत्यन्त रूप, गुणके द्वारा संशोधित न होने पर, सर्वत्र वांछनीय नहीं है । सौन्दर्यगर्वित असंयत-प्रवृत्ति-संपन्न नर-नारी अपने समान सुरूप पति या पत्नी न पानेसे पहले असन्तुष्ट होते हैं, और फिर अन्तको प्रलोभनमें पड़कर उनके कुपथगामी होनेकी यथेष्ट आशंका है। • ___ रूपकी अपेक्षा गुणका अधिक मूल्य है, और गुणकी ओर कुछ अधिक दृष्टि रखना दोनों ही पक्षोंका आवश्यक कर्तव्य है। पात्रके यहाँ कुछ धन है कि नहीं, और स्त्री-पुत्र कन्या आदिके भरण-पोष. णका सुभीता है कि नहीं यह देखना, कन्याकी माताहीका क्यों, कन्याके पिताका भी मुख्य कर्तव्य है। मगर हाँ, धनके खयालसे निर्गुण पात्रको कन्या देना किसीके लिए भी उचित नहीं है। जो गुणहीन है, उसे धनसे भी सुख नहीं मिलता, और उसका वह धन बहुत ही सहजमें नष्ट हो जा सकता है। पात्री-पक्षके धन है या नहीं, यह देखनेका विशेष प्रयोजन नहीं है। हो तो अच्छा ही है, न हो तो कुछ हर्ज नहीं । सताकर दबाव डालकर कन्यापक्षसे धन या गहने वगैरह वसूल करना बहुत ही निन्दित नीच कार्य है। पिता-माता स्नेहके मारे ही कन्याको और दामादको यथाशक्ति गहने वगैरह देने के लिए तैयार रहते हैं। उससे अधिक लेनेकी चेष्टा शिष्टाचारविरुद्ध है। यह बात सर्ववादिसंमत है। इस बातको सभी लोग कहा करते हैं, किन्तु दुःखका विषय यही है कि काम पड़नेके समय उनमेंसे अधिकांश लोग इस बातको भूल जाते हैं । यह कुरीति शास्त्रके द्वारा अनुमोदित या चिरप्रचलित प्रथा नहीं है। यह आधुनिक प्रथा है। और, जब सभी लोग इस प्रथाकी निन्दा करते हैं, तो आशा की जाती है कि यह धीरे धीरे उठ भी जायगी।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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