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________________ ज्ञान और कर्म । और मैं अगर संपूर्ण रूपसे अन्यमनस्क रहूँ, अर्थात् मुझसे उस शब्दका मिलन न हो, तो मुझे उस शब्दका ज्ञान नहीं होता। __ हम जहाँ तक जान सके हैं वहाँ तक यही जाना गया है कि सब ज्ञानोंका ज्ञाता चेतन जीव है । हम यह ठीक तौरसे नहीं जानते कि अचेतनको ज्ञान हो सकता है या नहीं। लेकिन वैज्ञानिक पण्डित श्रीयुत डाक्टर जगदीशचंद्र वसु महाशयने अपनी 'चेतन और अचेतनका उत्तर ' ( Response in the Living and Non-Living ) नामकी पुस्तकमें जिन अद्भुत और आश्चर्यमय तत्त्वोंकी बात लिखी है, उनके द्वारा यह अनुमान होता है कि हम जिन्हें अचेतन कहते हैं वे एकदम अचेतन नहीं हैं। ज्ञेय जो है वह ज्ञाताके अन्तर्जगत् या बहिर्जगत्का विषय है। इस लिए ज्ञाता और ज्ञेयकी आलोचनाके बाद ही अन्तर्जगत् और बहिर्जगत्के सम्बन्धमें कुछ कहना आवश्यक है। उसके बाद उस अन्तर्जगत् और बहिर्जगत्का विषय किस उपायसे कहाँ तक जाना जा सकता है और उसके जाननेसे फल क्या है, अर्थात् ज्ञानकी सीमा कितनी दूर तक है; ज्ञान लाभका उपाय क्या है, और ज्ञान लाभका उद्देश्य क्या है, इन सब बातोंकी भी कुछ कुछ आलोचना इस ग्रंथके प्रथम भागमें होना अप्रासंगिक या असंगत नहीं होगा। इस लिए उक्त सातों विषय, भूमिकामें दिखलाई गई परंपराके क्रमसे, अलग अलग अध्यायमें वर्णन किये जायेंगे।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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