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________________ तीसरा अध्याय ] पारिवारिक नीतिसिद्ध कर्म। २२३ AAAAN होने पर भी ठीक एकही नहीं हैं। कारण, बाल्यविवाह अनुचित होने पर भी, अगर विवाहके योग्य अवस्था ऐसी निश्चित हो कि दोनों पक्ष (स्त्री और पुरुष) की बुद्धि उस समय तक पक्की होना संभव न हो, तो भी उनका विवाह उनके मा-बाप या अन्य अभिभावकोंकी बिल्कुल असम्मतिमें होना उचित न होगा। अतएव पहले यही विवेचनीय है कि विवाह कितनी अवस्थामें होना चाहिए। पाश्चात्य देशके लोगोंकी, और इस देशके समाज-संस्कारकोंकी, रायमें पूर्ण जवानीके पहले विवाह होना उचित नहीं है। आईनके अनुसार यूरोपमें साधारणतः कमसे कम पुरुषका चौदह वर्षकी अवस्थामें और स्त्रीका बारह वर्षकी अवस्थामें व्याह होना चाहिए। ऐसे ही फ्रान्समें पुरुषका अठारह वर्षकी अवस्थामें और स्त्रीका पंद्रह वर्षकी अवस्थामें व्याह हो सकता है। किन्तु इन सब देशोंमें ऊपर लिखी हुई अवस्थासे अधिक अवस्थामें ही अकसर व्याह होते हैं। भारतवर्ष, विवाहकी अवस्थाके सम्बन्धमें, शास्त्रोंमें पुरुषके लिए यहाँतक न्यूनसीमा पाई जाती है कि द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) के बालक आठ वर्षकी अवस्थामें जनेऊ हो जाने पर कमसे कम नव वर्ष और ब्रह्मचर्यके साथ वेद पढ़नेमें बिता कर उसके बाद व्याह कर सकते हैं (1)। इसके अनुसार पुरुषकी विवाह-योग्य अवस्था कमसे कम सत्रह वर्षकी है । स्त्रीके लिए, कहीं प्रथम रजोदर्शनके पहले व्याह होनेकी विधि है और कहीं आठ वर्षसे लेकर बारह वर्षकी अवस्थातक विवाहकी अवस्था लिखी है (२)। प्रचलित व्यवहारके अनुसार हिन्दू समाजमें पुरुषके लिए कमसे कम चौदह वर्षकी अवस्था और स्त्रीके लिए नव या दस वर्षकी अवस्था विवाहके योग्य समझी जाती है। स्त्रियोंका विवाह अधिकसे अधिक बारह या तेरह वर्षकी अवस्थामें अवश्य हो जाता है। उनके लिए यह अवस्था उच्च सीमा है। भारतवर्ष में लौकिक विवाहकी अवस्थाकी न्यून सीमा, सन् १८७२ ई० के ३ आईनके अनुसार, पुरुषके लिए अठारह वर्ष और स्त्रीके लिए चौदह वर्ष है। (१) मनु अ० ३ श्लोक १-४, और अ० २ श्लोक ३६ देखो। (२) मनु अ० ९, श्लो० ८९ और ९४ देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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