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________________ ज्ञान और कर्म । [ द्वितीय भाग 66 " ,, महाभारतके वनपर्वमें यक्षके कः पन्थाः ( मार्ग क्या है ? ) इस प्रश्नके उत्तर में युधिष्ठिरने शास्त्रों और मुनियोंके मतभेदका उल्लेख करके कहा था - " महाजनो येन गतः स पन्थाः ( जिस राहले महत् जन गये हैं वही मार्ग है ) । इस स्थल पर महाजन शब्दका अर्थ जनसाधारण या जनसमूह है। जनसाधारण जिस मार्गमें चलते हैं वह एककी बुद्धिके द्वारा नहीं ( क्योंकि वह भ्रान्त हो सकता है ) दस आदमियोंकी बुद्धिके द्वारा निरूपित होता है । अतएव उसका ठीक मार्ग होना ही सर्वथा संभव है । इसमें भी एक प्रकारसे कहा गया है कि हमारी बुद्धि ही कर्तव्यताका अंतिम पथप्रदर्शक है । २०६ कर्तव्यता-निरूपणके दुर्गम होनेकी जो बात कही गई, उस तरहकी दुर्गमता अन्यान्य अपेक्षाकृत सहज मौलिक गुणोंके निरूपणमें भी होती है । जैसे - आयतनकी न्यूनाधिकता प्रत्यक्षका विषय और सहज जान पड़ती है, किन्तु लगभग समान आयतनकी दो वस्तुओंमें एक गोल और एक चतुष्कोण होनेपर देखते ही यह नहीं बताया जा सकता कि कौन छोटी है और कौन बड़ी है । जान पड़ता है, दोनोंको एकत्र रखकर भी उनके आयतनकी न्यूनाधिकताका निश्चय नहीं किया जा सकता । एकको खण्ड खण्ड करके दूसरीके साथ 'मिलाया जाय, तभी वह न्यूनाधिकता ठीक जानी जा सकती है । ऊपर जिन सब बातोंका उल्लेख हुआ उनसे यह देख पड़ता है कि यद्यपि प्रवृत्तिवाद, निवृत्तिवाद और सामञ्जस्यवादसे कर्तव्यताका निर्णय नहीं होता, तथापि उनसे कर्तव्यताका परिचय मिलता है, और वे कर्तव्यताका निर्णय करनेवाले न्यायवाद की सहायता कर सकते हैं । सुखकी अभिलाषा और हितकी अभिलापा - इन सुप्रवृत्तियोंका अनुसरण, निवृत्ति मार्गका अनुसरण, स्वार्थ- परार्थ और प्रवृत्ति - निवृत्तिका सामञ्जस्य करना और न्यायमार्गका अनुगमन, ये सभी कर्मके सद्गुण हैं । तो भी कर्ताकी अपूर्णता के कारण ये क्रमशः उच्चसे उच्चतर जान पड़ते हैं। न्यायमार्गका अनुसरण सबसे उच्च श्रेणीका और सुखको खोजना सबसे निम्न श्रेणीका है । देहयुक्त होनेके कारण हमारे कुछ एक अभावोंको पूर्ण करनेका अत्यन्त प्रयोजन है, इस लिए, और उस अपूर्णताके मारे हम यह नहीं समझते कि हमारा यथार्थ सुख क्या है, इस लिए भी, अनेक समय सुखकी खोज हमको
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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