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________________ दूसरा अध्याय ] कर्तव्यका लक्षण । १९७ यह कमसे कम कुछ कुछ सभीको मालूम रहना उचित है। इसी प्रश्नकी कुछ आलोचना यहाँ पर होगी। सुख-वाद। कर्तव्यताका लक्षण क्या है,इस विषयमें अनेक मतामत हैं। जीव निरन्तर सुखकी खोजमें लगा हुआ है, इसी कारण किसी-किसीके मतमें “ जो सुखकर है वही कर्तव्य है" यह कर्तव्यताका लक्षण होना कुछ विचित्र नहीं है। यही मत सुखवाद कहा जासकता है । इसके अनेक प्रकारके अवान्तर विभाग हैं। इसका निकृष्ट दृष्टान्त है, प्राचीन ग्रीसदेशके एपीक्यूरसका मत । उसका मूल-उपदेश है-"खाओ, पियो, मौज करो।" धर्मपरायण प्राचीन भारतमें यह मत अविदित नहीं था। यहाँके चार्वाक-संप्रदायका यही मत था । यथा-वे कहते हैं यावज्जीवेत् सुखं जीवेन्नास्ति मृत्योरगोचरः। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥ (१) अर्थात् जबतक जिये सुखसे जिये। मृत्युसे कोई बच नहीं सकता। जब यह देह जलकर भस्म हो जायगी तो फिर यहाँ (संसारमें) आना कहाँ ? इस निकृष्ट प्रकारके सुखवादकी असारताको लोग सहजहीमें समझ सकते हैं । यही कारण है कि इन्द्रियपरवश होनेके कारण इस मतके अनुसार काम करने पर भी अनेक लोग लोकलजाके मारे मुंहसे इस मतके हामी बननेके लिए तैयार नहीं हैं। हितवाद। परन्तु अपने लिए विषयसुखलालसा निन्दनीय होनेपर भी पराये लिए विषयसुख-कामना प्रशंसनीय है । जो साधारणको, अर्थात् अधिकांश लोगोंको, सुखकर है, वही कर्तव्य है-इस मतका अनुमोदन अनेक बुद्धिमान् विद्वानोंने किया है। यह अन्य प्रकारका सुखवाद है। इसको हितवाद भी कहें तो कह सकते हैं। कोई अगर एक झूठी बात कह दे, तो उसका ऋण मिट जाय और उसके सर्वस्वकी रक्षा हो-ऐसे स्थलपर निकृष्ट हितवाद (१) सर्वदर्शनसंग्रहके अन्तर्गत चार्वाक-दर्शन देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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