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________________ सातवाँ अध्याय ] ज्ञान-लाभका उद्देश्य । १६३ उन वस्तुओंका क्रय-विक्रय आईन और राजशासनके द्वारा शासित करने के सिवा उक्त प्रकारके अनिष्टको रोकनेका और उपाय नहीं है। ज्ञानोपार्जनके साथ आनन्दलाभकी जिन तीन बाधाओंका उल्लेख किया गया है, उनमेंसे अन्तिम वाधा ज्ञानकृत पापले उत्पन्न है, और इस तरहकी बाधा साधारणतः सत्र तरहके शुभ फलोको नष्ट कर देती है। अतएव उसके बारेमें विशेप कुछ कहनेको नहीं है। वह सब धर्मों के विरुद्ध और सर्वत्र घृणित है । अन्य जिन दो बाधाओंका उल्लेख हुआ है वे वैसी नहीं हैं। उनका मूल भ्रान्ति है, ज्ञानकृत पाप नहीं । शिक्षाका जो फल होनेका नहीं, उसे जटिल और कठिन नियमोंक द्वारा संघटित करनेकी दुराकांक्षा ही उस ब्रमकी जड़ है। वह एक प्रकारका वृथा अभिमान है । और जैसे अन्यत्र वैसे ही इस जगह भी वृथा-अभिमान अनेक आनष्टोंकी जड़ है। __ जो अभाव और अपूर्णताएं हमारे दुःखकी जड़ हैं उन्हें ज्ञानलाभके द्वारा जान सकनेपर भी जो अनेक जगह उनकी पूर्तिके उपयुक्त उपाय काममें नहीं लाये जाते, उसका कारण खोज कर देखनेसे जान पड़ता है कि वह कारण कभी भ्रम, कभी अभिमान, कभी लोभ और कभी किसी अन्य असाधु प्रवृत्तिकी उत्तेजना हुआ करती है। इस विषयके दो-एक उदाहरण दिये जा सकते हैं। मादक-द्रव्य-सेवन ।। प्रायः सभी जानते हैं और स्वीकार करते हैं कि केवल दवाके लिए छोड़कर अन्य किसी कारणसे नशीली चीजोंका सेवन, कमसे कम ग्रीष्म-प्रधान देश (जैसे भारत ) में अत्यन्त अनिष्टकर होता है। अर्थनाश, स्वास्थ्यनाश, दुष्कर्ममें प्रवृत्ति आदि अनेक प्रकारके घोर अनिष्ट नशीली चीजोंके लेवनसे होते हैं। किन्तु उन सब अनिष्टोंको रोकनेके लिए हम किन उपायोंको काममें लाते हैं ? यह सच है कि जगह जगह मद्यपाननिवारिणी सभाएं हैं और उन सब सभाओंके मेंबर लोग बीच बीचमें मदिरापानके विरुद्ध तर्क-वितर्क करते हैं और राजकर्मचारियों के निकट मद्यपान रोकनेके लिए अनेक उपायोंका प्रयोग करनेकी प्रार्थना करते हैं। किन्तु प्रायः किसी भी सुसभ्य राज्यमें सुरापाननिवारणके लिए कार्य करनेवाली नियमप्रणाली नहीं देख पड़ती। बहुत लोगोंका खयाल है कि मद्यपाननिवारणके लिए कठोर राजशासन विधिविरुद्ध और निष्फल है । वे समझते हैं, सुरापान इतने दोषकी आदत
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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