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________________ सातवां अध्याय । ज्ञान-लाभका उद्देश्य । क्योंकि अभाव और अपूर्णता ही हमारे परवश होने कारण है और पूर्णतः प्राप्त होनेसे ही हम आत्मवश हो सकते हैं ज्ञानलाभके द्वारा जो दुःखकी निवृत्ति और सुखकी वृद्धि होती है वह इसी तरह होती है। पहले तो ज्ञानलाभके साथ साथ, जो हम नहीं जानते थे वह जान लिया, यह समझकर जो अपूर्व आनन्द होता है, वह थोड़े सुखका कारण नहीं है। यह सुख ही विश्वनियन्ता ईश्वरके शुभकर नियमके अनुसार विद्यार्थीके ज्ञानोपार्जनके लिए होनेवाले श्रमको कम करता है। दूसरे, ज्ञानके द्वारा हमारे दुःखका कारण जो सब तरहका अभाव और अपूर्णता है उसे हम जान सकते हैं और उसको दूर करनेका उपाय निकाल सकते हैं । अभाव और अपूर्णतासे उत्पन्न दुःखका अनुभव ज्ञानी और अज्ञानी सभी करते हैं; किन्तु उस दुःखके कारणका निर्देश और उसे दूर करनेका उपाय खोज निकालनेके लिए उपयुक्त ज्ञान-लाभका प्रयोजन है। तीसरे, जहाँ दुःख अनिवार्य है वहाँ पर भी ज्ञानके द्वारा उस दुःखके अनिवार्य होनकी उपलब्धि होनेसे उस दुःखकी सम्पूर्ण निवृत्ति भले ही न हो, उसमें बहुत कुछ कमी हो जाती है । जो दुःख अनिवार्य जाना जाता है उसे दूर करनेके लिए पहले वृथा चेष्टा, या दूर करनेकी चेष्टा नहीं हुई-यह सोचकर वृथा . पश्चात्ताप करके क्लेश पाना नहीं होता। चौथे, यथार्थ ज्ञान प्राप्त होनेपर ये दो बातें हृदयंगम हो जाती हैं कि संसार और सांसारिक सुखदुःख अनित्य हैं, और आत्माकी उन्नति करना ही नित्य सुखका एकमात्र कारण है । इसीसे क्रमशः सब दुःखोंका विनाश होता है, और सभी भवस्थाओंमें परम आनन्दका अनुभव करनेका अधिकार उत्पन्न होता है। ज्ञानलाभके द्वारा ऊपर कहे गये चार तरहके फलोंकी प्राप्तिमें अनेक बाधाएँ हैं, और उसीके लिए अनेक स्थलोंमें उक्त फलोंकी प्राप्ति नहीं होने पाती । अब उन सब बाधाओंके और उनके कारण यथार्थ फल-लाभकी रुकावटके बारेमें कुछ बातें कही जायेंगी। ज्ञानलाभके साथ साथ जो आनन्दलाभ होना चाहिए, उसके सम्बन्धमें तीन प्रधान बाधाएँ हैं । जैसे -शिक्षा-विभ्राट्, २-परीक्षा-विभ्राट् और ३-उद्देश्यविपर्यय । ज्ञान०-११
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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