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________________ छठा अध्याय] ज्ञान-लाभके उपाय। जगत् जब शिक्षाका विषय है, तब यह बात सर्वत्र संभव नहीं। अनेक जगह वस्तुके अनुकल्प या प्रतिकृतिसे ही सन्तुष्ट होना पड़ता है। उन प्रतिकृतियों में शब्दरचित विवरण सबकी अपेक्षा सुलभ और अधिक व्यवहृत है। वस्तुओंके ये शब्दमय रूप पुस्तकोंमें अंकित रहते हैं। शिक्षोपयोगी पुस्तकों में कुछ गुणोंका रहना आवश्यक है । जैसे विद्यार्थीके धन, समय और शक्तिको बचानेके लिए पाठ्यपुस्तकका आकार यथासंभव छोटा होना चाहिए। उसमें वर्णित विषय यथाशक्ति संक्षेपमें किन्तु पूर्णताके साथ, सरल रीतिसे किन्तु विशुद्ध भाषामें, विशद रूपसे किन्तु थोड़ी बातोंमें लिखा जाना चाहिए। २ शिक्षाको सुखद बनानेके लिए पाठ्यपुस्तक सुन्दर रूपसे छपी हुई, बीच बीचमें वर्णित विषयके चित्रोंसे सुशोभित और मधुर भाषामें सरल भावसे रचित होनी चाहिए। ३ भाषा सीखनेकी प्रथम पाठ्यपुस्तकोंमें नवीन शब्द और नवीन विषय बहुत थोड़े थोड़े और क्रमक्रमसे रक्खे जाने चाहिए । दुरूह शब्द और कठिन विषय तो एकदम न होने चाहिए। . ४ व्याकरण, भूगोल, इतिहास और विज्ञानकी प्रथम पाठ्यपुस्तकोंमें केवल उन उन विषयोंकी मोटी बातें रहनी चाहिए। ५ गणितकी प्रथम पाठ्यपुस्तकों में अति कठिन या दुरूह उदाहरण न होने चाहिए। ये सब पाठ्यपुस्तकोंके विशेष प्रयोजनीय गुण हैं। इनके सिवा हरएक पुस्तकमें साधारण रूपसे कुछ गुणोंका रहना आवश्यक है, कमसे कम कुछ दोषोंका वर्जन वाञ्छनीय है, और शायद उनका यहाँ पर उल्लेख असंगत नहीं होगा। वे सब दोष-गुण तीन भागों में बाँटे जा सकते हैं। १-पुस्तकके आकारसे सम्बन्ध रखनेवाले, २-पुस्तककी भाषा और रचनाप्रणालीसे सम्बन्ध रखनेवाले, ३-पुस्तकके विषयसे सम्बन्ध रखनेवाले। __ इस आलोचनामें बड़ी-छोटी, भली-बुरी, सब तरहकी पुस्तकोंके सम्बन्धमें कहा जायगा । इसी लिए सबसे पहले ग्रन्थकार महाशयोंसे मेरा विनीत निवेदन यह है कि उनकी रचनाके सम्बन्धमें कुछ कहनेका मेरा यही एकमात्र अधिकार है कि उन सब रचनाओंसे मैं भी अन्य साधारण पाठकोंकी तरह
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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