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________________ छठा अध्याय] ज्ञान-लाभके उपाय । १३७ उससे उत्पन्न आनन्द शिक्षाके सहकारी हों। यह शिक्षा सुखकर अवश्य है, लेकिन सहज या अनायासलब्ध नहीं स्वीकार की जा सकती। कोई एक नई बात सुनकर उसे सीखनेके लिए बच्चे लगातार उसे रटते हैं; कभी शुद्ध उच्चारण करते हैं; कभी अशुद्ध उच्चारण करते हैं; कभी भूल जाते हैं तो फिर सुन लेते हैं; स्वयं प्रयोग करनेमें कितनी असंलग्नता दिखाते हैं और उसके लिए " अमृतं बालभाषितं" कह कर लोग उनका बहुत आदर और 'प्यार करते हैं। बच्चे कितनी ही बार खुद प्रयोग करते हैं, और कितनी ही बार दूसरेके किये प्रयोगको सुनते हैं। इस तरह बहुत कुछ अभ्यासके वाद वे ठीक तौरसे वह बात सीखते हैं। किसी कठोर शिक्षकने अगर अनुचित ताड़ना की, अथवा अविवेक और शुभाकांक्षी अभिभावकने समय 'बचानेके लिए वृथा यत्न किया तो उससे इस शिक्षामें कोई रुकावट नही 'पड़ती। अन्य भाषा सीखनेके समय इन सब बाधाओंको दूर कर देना चाहिए, और ऐसा हो भी सकता है। किन्तु ऊपर कहे गये सब सुयोग पाना असंभव है। इन सुयोगोंको कुछ कुछ पानेका एक मात्र उपाय यही है कि जो भाषा सिखानी हो उस भाषामें बोलनेवालोंमें शिक्षार्थी रक्खा जाय। जहाँ इस उपायका अवलम्बन असंभव है, वहाँ शिक्षार्थीको सिखानेकी भाषाके लिखनेपढ़ने और बोलनेका अभ्यास कराना ही श्रेष्ट उपाय है। किसी किसीके मतमें यद्यपि काव्य पढ़ना भाषाशिक्षाका उपाय हो सकता है, लेकिन प्रथम अवस्थामें व्याकरण पढ़ना निष्प्रयोजन और कष्टकर है । वर्तमानमें प्रचलित जिन भाषाओंका व्याकरण अतिसहज है, शब्दरूप और 'धातुरूप स्वल्प और सरल हैं (जैसे अँगरेजी भाषा), उन्हें सीखने में, प्रथम अवस्थामें, व्याकरण पढ़ना अनावश्यक भी हो सकता है। लेकिन जिन प्राचीन अप्रचलित भाषाओंके व्याकरण सहज नहीं हैं, जिनमें शब्दरूप और धातुरूप अतिविस्तृत और एक जटिल व्यापार हैं (जैसे संस्कृत भाषा ), उन्हें सीखनेमें कुछ व्याकरण पढ़ना अर्थात् कमसे कम अधिक व्यवहृत शब्दों और धातुओंके रूप कंठ करना, श्रमसाध्य होने पर भी अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि उनके सीखनेका यही एक मात्र उपाय है। जरा सोचकर देखनेहीसे समझमें आजायगा कि व्याकरण पढ़ना निकाल देनेसे असल में वह श्रम कुछ कम नहीं होता। पहले देखनेमें श्रम कुछ कम हुआ जान पड़ सकता है, किन्तु
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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