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________________ ज्ञान और कर्म । [ प्रथम भाग का कुछ कुछ ज्ञान सबके लिए प्रयोजनीय है, और ऊपर जैसा आभास दिया गया है, उन सब विषयोंका उतना उतना साधारण ज्ञान प्राप्त करना सबके लिए साध्य है, इस बारेमें भी अधिक सन्देह करनेका कोई कारण नहीं है । जिस विषयकी जितनी बात जानी जाय उतनी बात अच्छी तरह जान लेनी चाहिए | किन्तु कोई विषय जानने बैठें तो उसके सब अति सूक्ष्म तत्त्वोंको भी जान लें, और अगर ऐसा न कर सकें तो उन विषयोंका बिल्कुल न जानना ही अच्छा, यह बात अपूर्ण अल्पबुद्धि मनुष्य के लिए संगत नहीं है । यह एक शास्त्र में अपनेको पण्डित मानकर अभिमान करनेवालेकी बात है । संसारमें पूर्णता कहाँ है ? सभी अपूर्ण है । उच्च आकांक्षा अच्छी है, किन्तु जहाँ वह आकांक्षा पूर्ण होनेकी संभावना नहीं है, वहाँ थोड़े में सन्तुष्ट न हो कर, अधिक पानेकी संभावना न होनेके कारण, जो कुछ थोड़ा पाया जाय उसे भी, अभिमान करके, न लेंगे कहना बुद्धिमानका कार्य नहीं है । अनेक विषयोंका अल्पज्ञान अर्थात् पल्लवग्राही होनेकी अपेक्षा अल्प विषयका गंभीर ज्ञान अच्छा है । किन्तु यह बात शिक्षाके शेष भागकी है। प्रथम भाग में सभी प्रयोजनीय विषयोंका कुछ कुछ ज्ञान प्राप्त करनेका प्रयत्न कभी निष्फल नहीं हो सकता । अनेक लोग कहते हैं कि जो मनुष्य जिस विषयको जाननेकी इच्छा करे उसे शिक्षाकी प्रथम अवस्थासे ही उस विषयको अच्छी तरह जानने की चेष्टा करना उचित है, और ऐसा होगा तो अन्यान्य विषय सीखने के लिए उसे समय ही नहीं मिलेगा। यह बात उतनी संगत नहीं जान पड़ती । पहले तो अनेक विषयोंका कुछ कुछ ज्ञान हुए विना विद्यार्थी प्रथम अवस्थामें ही यह ठीक नहीं कर सकता कि कौन विषय सीखना उसके लिए उपयोगी है । दूसरे, अनेक विषयोंको थोड़ा थोड़ा किन्तु अच्छी तरह अर्थात् विशुद्धरूपमे जाननेकी शिक्षाकी प्रथम अवस्था में जो समय लगता है वह वृथा नहीं जाता । उस शिक्षा में जो बुद्धिका संचालन और अनेक विषयोंका सामान्य ज्ञानलाभ होता है, उसके द्वारा, बादको जो कोई विशेष शास्त्र सूक्ष्मरूपसे सीखा जाता है उसके सीखने में सुविधाके सिवा असुविधा नहीं होती । उसी तरह पहले सीखे हुए अनेक विषयों में कुछ ज्ञान प्राप्त कर लेनेवाले और उस शिक्षाके द्वारा परिमार्जित बुद्धिवाले विद्यार्थी लोग अन्तको अपनी अपनी अभीष्ट विद्या विशेष पारदर्शी होते हैं । १२४
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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