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________________ १२२ शान और कर्म। [प्रथम भाग न्धमें दूसरी बात “ प्रयोजनीय और सर्वांगीन उत्कर्ष किसे कहते हैं ?" इस प्रश्नकी आलोचना है। इस प्रश्नका उत्तर क्या है, इसका कुछ आभास जपर दे दिया गया है। अब वही उत्तर और भी जरा स्पष्ट करके दिया जाता है। __ प्रयोजनीय ज्ञानके विषय दो तरहके हैं। कुछ विषय ऐसे हैं, जिन्हें जानना सभीका कर्तव्य है, और कुछ विषय ऐसे हैं जो शिक्षार्थी जिस व्यवसाय (पेशे ) को ग्रहण करना चाहता है उसके ऊपर निर्भर हैं। __ पहले प्रकारके विषय ये हैं शिक्षा की मातृभाषा और जिन अन्य जातियोंके साथ शिक्षार्थीका आगे चलकर संसर्ग होगा उनकी भाषा, गणित, भूवृत्तान्त, इतिहास, देहतत्त्व, मनोविज्ञान, जड़विज्ञान, रसायनशास्त्र और धर्मनीति । इन सब विषयोंका कुछ कुछ ज्ञान होना सभीके लिए अत्यन्त आवश्यक है। प्रथम विषय अर्थात् अपनी जातिकी मातृभाषा जाननेकी प्रयोजनीयता प्रमाणित करनेकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। मातृभाषा सीखने में किसीको अधिक कष्ट भी नहीं होता। और, कमसे कम एक विजातीय भाषा बिना जाने संसारका काम अच्छी तरह चलाया नहीं जा सकता। मगर हाँ, विजातीय भाषा और साहित्यमें सबके पाण्डित्यका प्रयोजन नहीं है। गणितका भी कुछ ज्ञान होना सबके लिए अति प्रयोजनीय है। कारण, गणितका कुछ ज्ञान हुए विना साधारण हिसाब किताब भी नहीं रक्खा जा सकता, भूमिके क्षेत्रफलका निरूपण नहीं किया जा सकता, साधारण विषयका लाभ या हानि भी समझमें नहीं आ सकती। इस स्थानपर गणितके गम्भीर या सूक्ष्म तत्त्वकी बात नहीं कही जा रही है। भूवृत्तान्त अर्थात् हम जिस पृथ्वीपर वास करते हैं उसका आकार-प्रकार किस तरहका है, उस पृथ्वीपर उपस्थित प्रधान प्रधान देश, नगर, पर्वत, सागर और नदियोंके नाम क्या हैं, और एक स्थानसे अन्य स्थानमें जानेकी राह कैसी है, इन सब विषयोंका कुछ ज्ञान भी सबके लिए आवश्यक है। किन्तु पृथ्वीके सब सूक्ष्म तत्त्व जानना भी सबके लिए आवश्यक है-यह कहना ठीक नहीं। इतिहास, अर्थात् बड़ी बड़ी जातियोंके प्रधान प्रधान कार्य और उन कायाके द्वारा वर्तमान अवस्था संघटित होनेमें कहाँतक सहायता पहुंची है, इसका विवरण भी अगर सब लोग जान लें तो अच्छा हो। हाँ, छोटे बड़े
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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