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________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय | ११९ एक तरफ एकदम अयत्न करके दूसरी तरफ अत्यन्त अधिक यत्न करने काम नहीं चल सकता; सब तरफ नजर रखकर चलना चाहिए । ऐसी जगह पर गणितके गरिष्ट-फल-निरूपणका नियम स्मरणीय है। उसका एक उदाहरण यहाँ पर दे देना एकदम अप्रासंगिक न होगा । एक ' वृत्त ' के बीच बहुत बड़ा ' त्रिभुज ' खींचना हो तो बहुत बड़ा ' लंब ' खोजनेसे काम नहीं चल सकता । कारण बृहत्तम लंब खोजा जायगा तो त्रिभुज एकदम गायब हो जायगा । बृहत्तम भूमि खोजनसे भी कार्यसिद्ध न होगा | ठीक बृहत्तम त्रिभुज वृत्तमध्यस्थ समबाहु त्रिभुज होगा । हमारे किसी भी विषय में पूर्णता नहीं है; सभी विषयोंमें हम सीमाबद्ध वृत्तके भीतर कार्य करते हैं। हमारे जीवनकी अनेक समस्याएँ ही गणित के. गरिष्ठफलनिरूपणकी समस्याकी तरह हैं। किसी एक ओर उच्च आकांक्षा करनेसे, अधिक फलका लाभ दूर रहे, कभी कभी एकदम निराश होना होता है । सभी तरफ दृष्टि रखकर आकांक्षाको शान्त या पूर्ण करनेसे ही यथासंभव फल पाया जाता है । एक ओरका उत्कर्षसाधन जैसे दूसरी ओरके उत्कर्षसाधनका विरोधी है, वैसे ही शिक्षार्थीका उत्कर्षसाधन और ज्ञानलाभ इन दोनों में भी कुछ कुछ परस्पर विरोध हो सकता है । यथासंभव ज्ञानलाभ के लिए जो यत्न और श्रम आवश्यक है, वह प्रायः शिक्षार्थीके मनके उत्कर्षको संपन्न करता है । सुतरां वहाँतक ज्ञानलाभ और मानसिक उत्कर्षसाधन साथ साथ चलता है । लेकिन दैहिक उत्कर्षसाधन भी उसीके साथ सर्वत्र होता है कि नहीं, यह ठीक नहीं कहा जा सकता । जहाँ पर वह नहीं होता वहाँपर यथासंभव देहके भी उत्कर्षसाधन के लिए अलग यत्न करना आवश्यक है, और उसके द्वारा ज्ञानलाभके लिए उपयोगी श्रमकी सहायता हो सकती हैं । किन्तु अधिक ज्ञानarre लिए जो यत्न और श्रम आवश्यक है वह अगर शिक्षार्थीकी स्मृति - शक्ति और श्रमशक्तिसे अतिरिक्त हो, तो उसके द्वारा उसके देह और मनका उत्कर्ष न होगा, बल्कि उलटे अनिष्टघटना ही हो सकती है । और, ऐसे स्थल में उसको मिला हुआ ज्ञान व्यवहारयोग्य शस्त्र या शोभन भूषण न होकर भारस्वरूप हो जाता है और उसे पण्डितमूर्ख श्रेणी के अन्तर्गत बना देता है ।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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